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________________ २४. जैनधर्म-मीमांसा अच्छा कार्य है, क्योंकि उससे महापुरुषोंके जीवनका विशेष स्मरण होता है तथा उनके समान बननेकी भावना होती है। दूसरा लाभ यह है कि देशाटनसे हृदयकी सङ्कुचितता दूर होती है, विदेशके गुणोंका परिचय होता है, अनुभव बढ़ता है, प्रान्तीयताके स्थानमें मनुष्यताका भाव उत्पन्न होता है। परन्तु बहुतसे मनुष्य इन दो प्रकारके लाभोंमेंसे एक भी लाभ नहीं उठाते, न उनके मनमें इस प्रकारके लाभ उठानेका विचार रहता है। ऐसे लोगोंके लिये तीर्थ यात्रा भी मढ़ता है । वे लोग बिना किसी विवेकके दूसरोंकी नकल करते हैं । इस प्रकार विवेकशून्य होकर मन्दिर बनवाना आदि कार्य भी मूढ़ता कहलाते हैं। ____ इसी प्रकार और भी बहुत-सी मूढताएँ हैं । एक आदमी बीमार होता है तो बीमारीके अनुसार उसका इलाज करना ठीक है । परन्तु यदि कोई बीमारीको दूर करनेके लिय शीतलाको जल चढ़ाता है, दुर्गापाट कराता है, मूर्तियोंका चरणोदक सिरसे लगाता है, मंत्र जपता है तो यह सब उसकी लोक-मूढ़ता है फिर भले ही ये सब काम महावीरको आधार बनाकर किये जायें या बुद्धको, विष्णुको, शिवको या और किसी देवी-देवताको । कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि बीमारी वगैरहको दूर करनेके लिये जिनेन्द्रकी या अपने देवकी पूजा, अर्चा आदिमें कुछ दोष नहीं है परन्तु दूसरे देवोंकी या कुदेवोंकी उपासनामें दोष है । परन्तु यह भूल है । बीमारी वगैरहको दूर करनेके लिये देवपूजा आदिको हम इसलिये मूढ़ता कहते हैं कि उन देवोंका और बीमारकेि रहने और जानेसे कोई सम्बन्ध नहीं है। बीमारियाँ देवताओंके कोपसे न होती हैं न उनकी प्रसन्नतासे जाती हैं इसलिये
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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