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________________ सम्यग्दर्शनके चिह्न २६७ हो सकता । मृत्यु-भयको जीत लेनेपर अन्य सभी भय जीत लिये जाते हैं, इसलिये सात प्रकारके भय गिनानेकी क्या आवश्यकता है ? एक मृत्यु-भयके दूर करनेका निरूपण करना चाहिये । 1 उत्तर- - मृत्यु-भय बड़ा भय तो है परन्तु वह इतना व्यापक नहीं है कि सब भयोंको अपने अन्तर्गत कर सके । बहुत से आदमी ऐसे होते हैं जो मृत्युसे नहीं डरते किन्तु अन्य बहुतसी बातोंसे डरते हैं । कोई मोही जीव स्वयं मर जाता है परन्तु अपने किसी इष्टका मरना नहीं सह सकता । वह मृत्युसे नहीं डरता, परन्तु इष्ट-वियोगसे डरता है । कोई कोई कंजूस मांत स्वीकार कर लेते हैं, परन्तु धन नहीं छोड़ सकते । कोई जीवनकी पर्वाह नहीं करता किन्तु यशकी पर्वाह I करता है । जिस विषयमें हमारी जितनी अधिक आसक्ति होगी उस विषयमें हम उतने ही अधिक भीत होंगे । मृत्युका भय ही कर्तव्य -- मार्ग में बाधक नहीं होता किन्तु यशकी आसक्ति भी कर्तव्यमें बाधक होती है । इसी प्रकार अन्य आसक्तियाँ भी कर्तव्य मार्ग में बाधक होती हैं । इसलिये कर्तव्य मार्ग में आड़े आनेवाले प्रत्येक भयका त्याग 1 होना चाहिये । अत्राणभय- -या आदान भय - सम्यग्दृष्टिको अशरणता या अरक्षाका और चोरादिका भी भय नहीं होता । वह तो स्वावलम्बनकी मूर्ति होता है । बहुतसे लोग इसलिये कल्याण मार्गके चलनेसे या प्रचारसे हट जाते हैं कि उनका अवलम्बन न छूट जाय । 'अगर मैं ऐसी बात कहूँगा तो अमुक सेठजी नाराज़ हो जायँगे ' अथवा ' मेरी नौकरी छूट जायगी, इसलिये मुझे ऐसी बात बोलना चाहिये या ऐसा काम करना चाहिये जिससे मुझे अमुककी सहायता मिलती रहे, मेरी.
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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