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________________ २६२ जैनधर्ममीमांसा wormer प्रश्न-परलोकका भय तो धर्मात्मापनका चिह्न माना जाता है। जब कोई पाप करता है तो उसे पापसे निवृत्त करनेके लिये कहा जाता है कि भाई, कुछ परलोकसे डरो! फिर सम्यग्दृष्टि, परलोकका भय क्यों नहीं रखता ? उत्तर - डरना' के प्रयोग अनेक तरहके हैं। कभी कभी ऐसा बोला जाता है कि 'पापसे डरो' तब 'पापसे डरने 'का अर्थ है पापके फलसे डर कर पापसे घृणा करना। जब कहा जाता है कि 'ईश्वरसे डरो!' तब इसका अर्थ है 'ईश्वरके न्यायपर विश्वास रक्खो' वह तुम्हारे कर्मका फल जरूर देगा।'' परलोकसे डरो' इसका अर्थ है कि पाप करनेपर भी अगर तुम्हें इस जन्ममें उसका फल नहीं मिल पाया है तो परलोकमें जरूर मिलेगा इसलिये परलोकसे डर कर पाप मत करो। भावनाके भेदसे भय अनेक तरहका होता है। ईश्वरका भी भय होता है और शैतानका भी भय होता है; परन्तु इन दोनोंमें बहुत अन्तर है। परलोकसे डरनेका अर्थ जहाँ कर्मफलपर विश्वास है और उस विश्वाससे पापसे दूर होनेका विचार है वहाँ वह बुरी चीज नहीं है । ऐसा भय तो सम्यग्दृष्टिके संवेग चिह्नमें बताया गया है । परन्तु एक दूसरे प्रकारका डर होता है जो पापीके मनमें वास करता है । जिस प्रकार एक ईमानदार आदमी न्यायाधीशसे नहीं डरता, क्योंकि वह जानता है कि मैं निरपराध हूँ और निरपराधको न्यायाधीश दण्ड नहीं दे सकता, और एक अपराधी न्यायाधीशके नामसे काँपता है उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीवको परलोकका भय नहीं होता और मिथ्यादृष्टि परलोकके नामसे काँपता है। वेदनाभय रोग आदिकी वेदनाओंका भय सम्यग्दृष्टिके कर्तव्य
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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