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________________ २४४ जैनधर्म-मीमांसा rrrrrrrrarian arrrrrrrrrrrrrrrrrrr.wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww ___ वैज्ञानिक युक्तियोंसे आत्माका पृथक् अस्तित्व सिद्ध कर दिया गया है । थोड़ीसी बातें और भी विचारणीय हैं। (ग) आत्माके नित्यत्वके लिये जाति-स्मरण भी प्रमाण-रूपमें पेश किया जाता है । जन्मान्तरके स्मरणकी घटनाएँ अगर अंशरूपमें भी सत्य हैं तो भी वे आत्माके अस्तित्वको सिद्ध करती हैं। समाचारपत्रोंमें ऐसी बहुत-सी घटनाएँ निकला करती हैं । यद्यपि उनपर अभी विश्वास नहीं किया जा सकता फिर भी इस दिशामें खोज करना चाहिये। __ (घ) एक ही माता-पिताकी सन्तानमें बहुत अन्तर पाया जाता है । एक स्वार्थी, कषायी, उदंड और मूर्ख होता है; दूसरा परोपकारी, शान्त, विनयी और बुद्धिमान होता है। कभी कभी तो युगल पैदा होनेवाले बच्चोंमें भी ऐसा अन्तर देखा जाता है । यह भेद रज-वीर्य और वातावरणके भेदसे ही हुआ है, उसमें उन व्यक्तियोंके पूर्वजन्मके संस्कार कारण नहीं हैं-यह साबित करना कठिन है। इन बातोंमेंसे जो जिसको रुचिकर हो वह उसीसे आत्माके नित्यत्वको समझ सकता है। जो लोग विश्वाससे ज़रा भी काम न लेना चाहते हों उन्हें पहिले और दूसरे विशेषतः दूसरे ( ख ) पर विशेष ध्यान देना चाहिये । उससे आत्मा एक स्वतन्त्र तत्त्व सिद्ध हो जाता है । स्वतन्त्र तत्त्व सिद्ध हो जानेपर परलोकका मानना अनिवार्य है, क्योंकि किसी तत्त्वका या शक्तिका नाश नहीं होता, सिर्फ उसमें परिवर्तन होता है । यह बात प्रायः सभी दार्शनिक मानते हैं और आधुनिक भौतिक विज्ञानका तो यह मूल सिद्धान्त है । इसलिये मरनेके बाद भी आत्माका नाश नहीं हो सकता; उसे कहीं न कहीं
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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