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________________ सम्यग्दर्शनका स्वरूप स्कंध से नहीं होता, इसलिये यन्त्रके गुण परमाणुमें नहीं माने जा सकते । जो गुण परमाणुमें नहीं हैं वे परमाणुओंसे बने हुए स्कंध ( यन्त्र ) में कहाँसे आ जायँगे ? इसलिये हर एक मशीनमें एक नया द्रव्य मानना पड़ेगा । उत्तर – पहिले सिद्ध किया जा चुका है कि यंत्रके जितने काम हैं वे किसी नये गुणको सिद्ध नहीं करते, वे सब ( गुण) परमाणुमें भी पाये जाते हैं। परमाणुको तो हम देख नहीं सकते इस लिये यही कहना चाहिये कि वे गुण अन्य स्कंधोंमें भी पाये जाते है । यन्त्रका काम गति, प्रकाश आदि है । वे सब गुण अन्य स्कंधों में 1 भी पाये जाते हैं। यह बात दूसरी है कि वे यन्त्रमें कुछ अधिक रूपमें पाये जायँ और साधारण स्कंध में साधारण रूपमें । परन्तु पाये दोनोंमें जायँगे । इसलिये मशीनमें हमें किसी नये द्रव्यके मानने की आवश्यकता नहीं है। मस्तिष्क आदिमें जो चैतन्य बतलाया जाता है उसे हम उसका गुण तभी कह सकते हैं जब वह अन्य स्कंधों में भी साबित हो सके, भले ही वह थोड़े रूपमें हो । अन्य स्कंधोंमें चैतन्य साबित होनेसे परमाणुओंमें भी चैतन्य माना जायगा जिसका विकसित रूप मस्तिष्क आदिमें मिलेगा । २३९ लोहे के दो टुकड़ोंके घर्षणसे अगर विद्यत् पैदा होती है तो हम विद्युत्को लोहा नहीं कह सकते या पानीके घर्षण से पैदा होती है तो हम विद्युत्को पानी नहीं कह सकते हैं । उसी प्रकार स्नायु-प्रक्रियाले पैदा ( अभिव्यक्त ) होनेवाला चैतन्य स्नायु या मस्तिष्क-रूप नहीं माना जा सकता । इसका कारण ऊपर अच्छी तरह दिखा दिया गया है; फिर भी कुछ वक्तव्य शेष है ।
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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