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________________ दिगम्बर-श्वेताम्बर mmmmmmmmmmmmmmmmmm उनके नाम हैं-विष्णु, नन्दी, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु *; जब कि श्वेताम्बरोंके कथनानुसार जम्बूस्वामी के पीछे प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, आर्यसंभूतविजय और भद्रबाहु श्रुतकेवली हुए हैं । भद्रबाहुको दोनों संघ श्रुतकेवली मानते हैं इससे यह तो मालूम होता है कि भद्रबाहुके समय तक संघभेद नहीं हुआ था । बीच के चार नामोंमें जो मतभेद है उसका कारण यह मालूम होता है कि जो जिस दलके विचारोंका पोषक था उसीका नाम उस दलने श्रुतकेवलियोंमें रखा, और विरोधी विचारवालोंको छोड़ दिया। इन चारोंके पीछे जो भद्रबाहु श्रुतकेवली हुए वे बहुत प्रभावशाली थे । पूर्ण जैनश्रुतके ये अंतिम आचार्य थे। ये आचारमें उग्र तपस्वी थे तथा दिगम्बर वेषमें रहते थे इसलिये दिगम्बरत्वके पोषक इन्हें मानते थे । साथ ही ये विचारमें इतने उदार थे कि सवस्त्रवेषपोषकोंको ये हीनदृष्टिसे न देखते थे । इस तरह दोनों दलवाले इन्हें अपना ही समझते थे । भद्रबाहुके बाद दोनों दलोंको सन्तुष्ट रख सकनेवाला कोई न मिला । इधर कारणवश दोनों दलके लोग एक दूसरेसे दूर भी हो गये। उग्र विचारवाले दक्षिण चले गये और नरम विचारवाले उत्तरमें ही रहे । इस घटनाने एक-दूसरेकी मुख-लजाका अंकुश भी हटा दिया । उत्तरवालोंने सोचा कि “ उपविचारवाले बात-बातमें रोक-टोक किया करते हैं और द्रव्यक्षेत्रकालभावका विचार ही नहीं करते इसीलिये हमें स्पष्ट रूपमें मध्यम मार्ग स्वीकार * जम्बूनामा मुक्ति प्रापयदासौ तथैव विष्णुमुनिः । पूर्वाङ्गभेदभिन्नाशेषश्रुतपारगो जातः । एवमनुबद्धसकलश्रुतसागर पारगामिनोऽभासन् । नन्द्यपराजितगोवबनाया भद्रबाहुश्च ॥ नीतिसार।
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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