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________________ जैनधर्म-मीमांसा आठ प्रातिहार्य प्रातिहार्यौके नाम दोनों ही सम्प्रदायोंमें एक सरीखे हैं । उनके नाम हैं । १७६ ( १ ) अशोक वृक्ष -म० महावरिके शरीरसे बारह गुणा ऊँचा । म० महावीर विहार में प्रायः उपवनोंमें ठहरते थे । उनका आसन अशोक वृक्षके नीचे शिलापट्टपर होता था । ( २ ) सुरपुष्प - वृष्टि — भक्तोंके द्वारा पुष्प बरसाये जाते थे । ( ३ ) दिव्यध्वनि -म० महावीरकी वाणीको मालवकोश राग, बीणा, बाँसुरी आदिके स्वरसे देवता ( बाजा बजानेवाले लोग ) पूरते हैं । इससे मालूम होता है कि म० महावीर उपदेशमें कभी कभी अच्छे स्वर में कविता पढ़ा करते थे और भक्त लोग संगीतका मिश्रण करके उसे सुश्राव्य बनाते थे । ( ४ ) चामर - भक्तोंके द्वारा कभी कभी चमर दुराये जाते थे । (५) आसन — सुन्दर सिंहासन । - ( ६ ) भामण्डल — इस विषयमें पहिले कहा जा चुका है । (७) दुंदुभि – एक तरह के बाजे । ( ८ ) छत्र — भक्तों के द्वारा की गई छत्ररचना || मूलातिशय ऊपर जो अतिशय आदि बताये गये हैं वह सब मूलातिशयका विस्तार है जो कि कल्पित अकल्पित घटनाओंके सम्मिश्रणसे भक्त लोगोंने किया है । वास्तवमें म० महावीर के मूल अतिशय चार हैं 1
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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