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________________ १३२ जैनधर्म- मीमासा उस अनार्य नरेशको क्षमा कर दिया । सम्भव है, उस महावीरने उस आर्य नरेशको कुछ समझाया हो परन्तु समझानेका उल्लेख नहीं मिलता । समय म० शास्त्रों में इस गया है। अनार्य - इस घटनाको शास्त्रोंमें बड़ा विचित्ररूप दिया राजाको असुरेन्द्र और आर्य राजाको देवेन्द्र मान लिया गया हैजैसा कि पहले भी होता रहा है। देवोंकी अकाल मृत्यु नहीं होती, इस सिद्धान्त के कारण दिगम्बरोंको देवेन्द्र और असुरेन्द्रकी इस लड़ाईका रूपक पसन्द नहीं आया, इसलिये उन्होंने इस लड़ाईको नहीं माना है किन्तु इसके बदले में सिर्फ इतना स्वीकार किया है कि देवेन्द्र और असुरेन्द्र में परस्पर ईर्षा रहती है। इस तरह या तो साधारण दो राजाओंकी लड़ाई सुरासुर संग्राम के रूपमें परिणत कर दी गई है, अथवा वैदिक सम्प्रदाय के सुरासुर युद्धकी नकल करनेके लिये यह कल्पना की गई है । इसका उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि म० महाबीरको सुरासुरपूजित बतलाया जाय और वैदिक सम्प्रदायकी तरह जैनसम्प्रदाय में भी सुरासुर संग्रामका कुछ उल्लेख हो जाय । भक्तिकी दृष्टिसे ऐसी कल्पनाओंका होना न तो आश्चर्यजनक है न विशेष अनुचित | म० महावीरके इस तपस्या- कालमें और भी अनेक छोटी-मोटी घटनाएँ हुई होंगीं और हुई हैं। दिगम्बर सम्प्रदायमें सात्यकि नामक रूद्र ( रुद्र – भयङ्कर आकृति या प्रकृतिका आदमी ) के द्वारा उपसर्ग होने की बातका उल्लेख है । बहुतसी घटनाएँ छोटी हैं। कुछ घटनाएँ पुनरुक्त सरीखी हैं या अनावश्यक होनेसे छोड़ दी गई हैं। फिर भी उपर्युक्त घटनाओंसे यह बात अच्छी तरह सिद्ध हो जाती
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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