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________________ महात्मा महावीर बैठता है। एक बार गर्भस्थ भगवान्ने यह सोचा कि मेरे हलन-चलनसे माताको कष्ट न हो इसलिये वे इस प्रकार निस्तब्ध हो गये कि त्रिसलादेवीको यह सन्देह होने लगा कि मेरा गर्भ किसीने हर तो नहीं लिया अथवा गल तो नहीं गया ? इस आशंकासे कुटुंबी जन भी बहुत दुःखी हुए, तब भगवान्ने अंग फरकाया जिससे गर्भका अस्तित्व मालूम हुआ । ' गर्भस्थ बालकके सोचनेकी भक्ति-कल्प्य बातको अगर हम अलग कर दें तो इस वर्णनसे इतना तो मालूम होता है कि कुछ समयके लिये त्रिसला देवीका गर्भ गूढ़ हो गया था। त्रिसला देवी और देवानन्दाकी इन घटनाओंको मिलाकर लोकमें यह प्रसिद्धि हो गई हो कि वास्तवमें त्रिसलादेवीके गर्भ था ही नहीं-वह तो देवानन्दाका गर्भ अपहृत होकर त्रिसलाकी कुक्षिमें आ गया है। पीछेसे यह प्रसिद्धि धर्म-ग्रन्थोंमें पहुँच कर इन्द्रको बुला लाई हो और इस तरह वह अपने वर्तमान रूपको पहुँची हो।। ब्राह्मणकुलको नीच कुल साबित करनेके लिये यह घटना कल्पित की गई हो, यह बात बिलकुल नहीं जंचती । यह कार्य अन्य अनेक उपायोंसे हो सकता था। उसके लिये ऐसी असंभव घटना कल्पित नहीं की जा सकती । हाँ, यह निश्चित है कि किसी कारण गर्भ-हरणकी प्रसिद्धि हो गई और पीछे ग्रन्थकारोंने ब्राह्मणोंकी निन्दा करनेका बहाना ढूँढ़ लिया । इस घटनाका मूल खोजनेके लिये यह सिर्फ दिनिर्देश है। सम्भव है इसका और कोई कारण हो, जिसे आज हम नहीं जानते । म० महावीरका जन्मोत्सव अच्छी तरह मनाया गया था और वे बाल्यावस्थासे ही बलवान्, निर्भय, साहसी और बुद्धिमान् थे । उनकी
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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