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________________ जैन धर्म और मूर्ति पूजा जैन धर्मानुसार इस विश्व की रचना में दो प्रकार की वस्तुओं का भाग है । एक चेतना लक्षण से युक्त चेतन पदार्थ अर्थात् जीव (आत्मा) है और दूसरा जीव से विरुद्ध लक्षम वाला अचेतन पदार्थ अर्थात् अजीव है। * जीव अनंत हैं अचेतन परमाणुओं का समुदाय है । यह विश्व इन दोनों ही के आपसी मिलाव का फल स्वरूप है । अनंत काल से वह जीव अपने ही परिणामों के द्वारा आकर्षित किये हुये अचेतन पदार्थ के परमाणुओं मे लिप्त हुआ इस संसार में तरह २ के सुख दुःख का अनुभव कर रहा है। इसका कारण यह है कि ज्ञान, सुख सूक्ष्मता आदि गुण ही इस जीव का स्वभाव है ___ * यद्यपि भिन्न रमतवालों ने दृष्टि भेद के कारण इन जीव और अजीव पदार्थों के भेद तथा और लक्षण मिन्न २ प्रकार के माने हैं किन्नु इस स्थल पर उनमें गहरे घुसने की आवश्यकता न होने से केवल इतना ही बता देना पर्याप्त है कि इन्हीं जीप और अजीव पदार्थों को सांख्य दर्शन में पुरुष और प्रकृति कहा है और वेदान्त ने ब्रह्म और माया नाम से व्यपात किया है। -
SR No.010097
Book TitleJain Dharm aur Murti Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirdhilal Sethi
PublisherGyanchand Jain Kota
Publication Year1929
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size2 MB
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