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________________ में गुनाह जो मुझ से बन गया सही, कंकरीके चोर को कटार मारिये नहीं। यही कवि अपनी दूसरी स्तुति में लिखने हैं “कपि श्वान सिंह नवल अज बैल विचारे, तिथंच जिन्हें रंच न था बोध जितारे इत्यादि को मुरधाम दे शिव धाम में धारे, हम आपसे दातार का प्रभु आज निहारे"। इसप्रकार और भी कई पूजा पाठ स्तुतियां आदि हैं जिन में ऐसी ही बांत भरी पड़ी हैं। अब बताइये, इनका लोगों पर क्या प्रभाव पडता होगा ? ऐसी हालत में क्यों न व, परमात्मा को हिन्दुओं के जैसे कर्ता हर्ता परमेश्वर समझते रहेंगे और अपने ही अन्दर छिपी पड़ी हुई आत्मा की अनंत शक्ति में श्रद्धाहीन होकर सांसारिक दुःखों से भयभीत हुए, उन परमात्मा को ही सब कुछ सांसारिक सुख आदि देने का प्रभाव रखने वाले समझते रहेंगे? निस्संदह इन सब बातों के कारण हमारी समाज का धार्मिक विश्वास आमतौर से मिथ्यात्व के रूप में परिणत होगया है । लोग आत्मा और आत्मशक्ति में बिलकुल श्रद्धाहीन होगये हैं । वे अपने आपको, आत्मा के ज्ञान श्रादि गुणों के प्राप्त करने की सामर्थ्य से रहित, तुच्छ सा व्यक्ति समझते रहते हैं और अपने प्रत्येक सुख की प्रामि को भगवान के प्रभाव पर अवलंषित
SR No.010097
Book TitleJain Dharm aur Murti Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirdhilal Sethi
PublisherGyanchand Jain Kota
Publication Year1929
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size2 MB
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