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________________ सिद्धान्त १ अतः वस्तु प्रतिसमय उत्पाद व्यय और प्रोव्यात्मक रहता है । कही जाती है । 4 1 आशय यह है कि प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है, और उसमे वह परिवर्तन प्रति समय होता रहता है । जैसे, एक बच्चा कुछ समय बाद युवा हो जाता है और फिर कुछ कालके वाद वूढा हो जाता है । बचपन से युवापन और युवापनसे बुढापा एकदम नही आ जाता, किन्तु प्रतिः समय बच्चेमे जो परिवर्तन होता रहता है वही कुछ समय बाद युवापन च के रूपमे दृष्टिगोचर होता है। प्रति समय होनेवाला परिवर्तन इतन सूक्ष्म है कि उसे हम देख सकनेमे असमर्थ है । इस परिवर्तनके होते हुए भी उस बच्चेमे एकरूपता बनी रहती है, जिसके कारण वडा है, जाने पर भी हम उसे पहचान लेते है । यदि ऐसा न मानकर द्रव्यक), केवल नित्य ही मान लिया जाये तो उसमे किसी प्रकारका परिवर्तन नही हो सकेगा, और यदि केवल अनित्य ही मान लिया जाये तो आत्मा, के सर्वथा क्षणिक होनेसे पहले जाने हुएका स्मरण आदि व्यापार नहीं, वन सकेगा । अत. प्रत्येक द्रव्य उत्पाद, विनाश और धोव्य स्वभाव, वाला है । चूँकि द्रव्यमे गुण ध्रुव होते है और पर्याय उत्पाद विनाश शील होती है; अत. गुणपर्यायात्मक कहो या उत्पादव्यय प्रोव्यात्मव कहो, दोनों का एक ही अभिप्राय है । द्रव्यके इन दोनों लक्षणोमे वास्तव में कोई भेद नही है, किन्तु एक लक्षण दूसरे लक्षणका व्यञ्जकमात्र है द्रव्यका स्वरूप बतलाते हुए आचार्य कुन्दकुन्दने प्रवचनसारम् कहा है ។ ♡ 'दवियदि गच्छदि ताइ वाइ सम्भावपज्जयाई ज । दवियं तं भष्णते अणण्णभूद तु सत्तादो || || 6 अर्थ — 'द्र' धातुसे, जिसका अर्थ जाना है, द्रव्य शब्द बना है अतः जो अपनी उन उन पर्यायोको प्राप्त करता है, उसे द्रव्य कहते है। वह द्रव्य सत्तासे अभिन्न है ।' इससे यह बतलाया है कि द्रव्य सत्स्वरूप है । और जैसे पर्यायोक प्रवाह सतत् जारी रहता है, एकके पश्चात् दूसरी और दूसरी
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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