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________________ इतिहास १ उनका जामाता अपने धर्मसे च्युत हो गया । किन्तु फिर भी जैनधर्मस् ' उसकी सहानुभूति बनी रही। उसने अपनी विजयके उपलक्षमे हलेवी के जिनालय स्थापित जैनमूर्तिका नाम 'विजय पार्श्वनाथ' रक्खा उसके मंत्री गगराज तो जैनधर्मके एक भारी स्तम्भ थे । उनकी कता और दानवीरताका विवरण अनेक शिलालेखोमे मिलता है इनकी पत्नीका नाम भी जैनधर्मके प्रचार के सम्बन्धमे अति प्रसिद्ध है। उसने कई जिनमन्दिरोंका निर्माण कराया था जिनके लिये गंगर उदारतापूर्वक भूमिदान दिया था । विट्टिदेवके पश्चात् नरसिंह प्र 4 राजा हुआ । इसके मंत्री हुल्लप्पने जैनधर्मकी बडी उन्नति की। उसने जैनोके खोये हुए प्रभावको फिरसे स्थापित करनेका प्रय. ल किया । किन्तु होयसल' राजाओ के द्वारा संरक्षित वैष्णव धर्म द्रुत अभ्युन्नति, रामानुज तथा कुछ शैव नेताओका व्यवस्थित और कमवद्ध विरोध, और लिंगायतोके भयानक आक्रमणने मैसूर प्रदेशों जैनधर्मका पतन कर दिया । किन्तु भूल कर भी यह कल्पना नही करनी चाहिये कि वहाँसे जैनधर्मकी जड़ ही उखड़ गई। किस वैष्णव तथा अन्य वैदिक सम्प्रदायोके क्रमिक अभ्युत्थानके कारण उसका चैतन्य जाता रहा । यों तो जैनधर्मके अनुयायियों की तब भी अच्छी संख्या थी किन्तु फिर वे कोई राजनैतिक प्रभाव नही प्राप्त कर सके । वादके मैसूर राजाओने जैनोको कोई कष्ट नही दिया इतना ही नही, किन्तु उनकी सहायता भी की। मुस्लिम शासक हैदर नायक तक ने भी जैन मन्दिरोंको गाँव प्रदान किये थे यद्यति उसने श्रवणबेलगोला तथा अन्य प्रदेशोंके महोत्सव बन्द कर दिये थे । ३. राष्ट्रकूट वंश 1 राष्ट्रकूट राजा अपने समयके बडे प्रतापी राजा थे । इनके आश्रयसे जैनधर्मका अच्छा अभ्युत्थान हुआ । इनकी राजधानी पहले नासिक के पास थी । पीछे मान्यखेटको इन्होने अपनी राजधानी 1 १ 'स्टडीज़ इन साउथ इन्डियन जैनिज्म' | 4 1
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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