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________________ इतिहास वैशाली, राजगृह, नालंदा और पुण्डवर्द्धनमे अनेक निर्ग्रन्थ साधुओंक देखा था। वह कलिंग देशको जैनोका मुख्य स्थान कहता है। इस स्पष्ट है कि खारवेलके वाद भी इतने सुदीर्घ कालतक जैनधर्म कलिंग बना रहा। सम्राट् खारवेलके बाद ऐसा प्रतापशाली जैन राज अन्य नहीं हुआ। यद्यपि जैनधर्म प्राय सभी राजवशोके समयमे फला फूला, और अनेक अन्य राजाओने से साहाय्य भी दिया, किन्तु जिन हम पूरी तरहसे जैन कह सकें ऐसे राजा कम ही हुए। च ३. बङ्गालमें जैनधर्भ किन्ही विद्वानोकी दृष्टिसे जैनधर्मका आदि और पवित्र स्थान मगध और पश्चिम बंगाल समझा जाता है। एक सनय वगाल बौद्धधर्मकी अपेक्षा जैनधर्मका विशेष प्रचार बतलाया जाता है। वहाँके मानभूम, सिंहभूम, वीरभूम और बर्दवान जिलोका नामकरण भगवान महावीर और उनके वर्वमान नामके आधारपर ही हुआ है । जर क्रमश जैनधर्म लुप्त हो गया तो बौद्ध धर्मने उसका स्थान ग्रहण किया बंगालके पश्चिमी हिस्सेमे जो सराक जाती पाई जाती है वह जो श्रावकोंकी पूर्वस्मृति कराती है। अव भी बहुतसे जैनमन्दिरोव ध्वंसावशेष, जैनमूर्तियाँ, शिलालेख वगैरह जैन स्मृतिचिह्न बगालव भिन्न-भिन्न भागोमें पाय जाते हैं। श्रीयुत के० डी० मित्राकी खोज फलस्वरूप सुन्दरवनके एक भागसे ही दस जैनमूर्तियां प्राप्त हुई है। वाँकुरा और वीरभूम जिलोमे अभी भी प्राय जन प्रतिमाबोके मिलने का समाचार पाया जाता है। श्री राखलदास वन ने इस क्षेत्र तत्कालीन जैनियोका एक प्रधान केन्द्र बताया था। सन् १९४० ने पूर्व बंगालके फरीदपुर जिलेक एक गाँवमे एक जैनमूर्ति निकली थी जो: फीट ३ इचकी है। बंगालके कुछ हिस्सोंमें विराट जनमूर्तियाँ मर५८ नामसे पूजी जाती है। वांकुडा, मानभूम वगैरह स्थानोमें औ देहातोमे आजकल भी जैनमन्दिरोके ध्वसावशेष पाये जाते है मानभूममें पंचकोटके राजाके अधीनस्थ अनेक गांवो विशाल जैन
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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