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________________ जनवर्म गधमे दुर्भिक्ष पड़नेपर एक बड़े जन संघके साथ दक्षिण देगको चले ये, जिसके कारण तमिल और कर्नाटक प्रदेगमें जैनधर्मका खूब सार हुमा। ___ अत. भगवान महावीरके पश्चात् जैनधर्मकी स्थितिका परिचय रानके लिये उसे दो भागोमे वॉट देना अनुचित न होगा---एक त्तर भारतमें जैनधर्मकी स्थिति और दूसरा दक्षिण भारतमें जनमकी स्थिति । उत्तर भारतमे जैनधर्म उत्तर भारतके विभिन्न प्रान्तोमें जैनधर्मकी स्थिति तथा राजरानोपर उसके प्रभावका परिचय करानेसे पूर्व पूरी स्थितिका विहंवलोकन करना अनुचित न होगा। । विभिन्न वौद्ध इतिहासज्ञोके कथनसे पता चलता है कि बुद्ध नर्वाणके पश्चात् प्रथम शतीमें उत्तर भारतके विभिन्न स्थानोमें जैन होग प्रमुख थे। चीनी यात्री हुएनत्साग ईस्वी सन् की सातवी गतीमे गरत आया था। वह अपने यात्रा विवरणमें नालन्दा विहारका वर्णन करते हुए लिखता है कि एक निर्जन्य (जैन) साधुने जोज्योतिप विद्याका जानकार था, नये भवनकी सफलताकी भविष्यवाणी की थी। इससे प्रकट है कि उस समय मगध राज्यमें जैन धर्म फैला हुआ था। सैनधर्मकी उन्नतिका सूचक दूसरा मुत्य प्रमाण अगोककी प्रसिद्ध गोषणा है, जिसमें निम्रन्योंको दान देनेकी आज्ञा है। जो बतलाती है के अशोकके समयमें जैन-जो पहले निर्जन्यके नामसे त्यात थे योग्य माने जाते थे तथा इतने प्रभावशाली थे कि अनोक की राज्यघोषणा उनका मुख्य रूपसे निर्देश करना आवश्यक समझा गया। उत्तर भारतसे जैनधर्मकी उन्नतिकी दृष्टिले कलिंगका नान उल्लेखनीय है। ईस्वी पूर्व दूसरी शताब्दीका प्रसिद्ध खारवेल शिलारेख कलिंगमें जैनधर्मकी प्रगतिको प्रमाणित करता है। श्री रगा - वामी आयंगरके मतानुसार वौद्धधर्मके प्रचारके प्रति अशोकने जो
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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