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________________ ३१४ जैनधर्म जाता है, यह 'सौन' शब्द 'श्रमण' शब्दका अपभ्रा जान पड़ता है। प्राचीनकालमें जैन साधु श्रमण कहलाते थे। इस प्रकारसे सलनो या रक्षावन्धनका त्यौहार जैन त्यौहारके रूपमे जैनोमे आज भी मनाया जाता है। उस दिन विष्णुकुमार और सात सौ मनियोकी पूजन की जाती है। उसके बाद परस्परमे राखी बांधकर दीवारोपर चित्रित , 'सौनों को आहार दान दिया जाता है। तव सव भोजन करते है और गरीबों तथा बाह्मणोंको दान भी देते है। ३ तीर्थक्षेत्र ___ साधारणत जिस स्थानकी यात्रा करनेके लिये यात्री जाते हैं, उसे तीर्थ कहते है। तीर्थ शब्दका अर्थ घाट अर्थात स्नान करनेका स्थान भी होता है किन्तु जनोंमें कोइ स्नानस्थान तीर्थ नहीं है । नदियोक जलमें पापनाशक शक्ति है यह वात हिन्दू मानते है किन्तु जन नही मानते । इसी प्रकार सती होनेकी प्रथा हिन्दुओकी दृष्टिसे मान्य है और इसलिये वे सतियोके स्थानोको भी तीर्थकी तरह पूजते है, किन्तु जैन उन्हें नही मानते । जैन दृष्टिसे तो तीर्थशब्दका एक ही अर्थ लिया नाता है-'भवसागरसे पार उतरनेका मार्ग वतलानेवाला स्थान । इसलिये जिन स्थानोपर तीर्थङ्करोने जन्म लिया हो, दीक्षा धारण की हो, तप किया हो, पूर्णज्ञान प्राप्त किया हो, या मोक्ष प्राप्त किया हो, उन स्थानोको जनी तीर्थस्थान मानते है । अथवा जहाँ कोई पूज्य वस्तु वर्तमान हो, तीर्थङ्करोंके सिवा अन्य महापुरुष जहाँ रहे हों या उन्होने निर्वाण प्राप्त किया हो, वे स्थान भी तीर्थ माने जाते है । जैनोके तीर्थोकी सख्या बहुत है । उन सवको वतला सकना शक्य नही है, क्योंकि जैन धर्मकी अवनतिके कारण अनेक प्राचीन तीर्थ भाज विस्मृत हो चुके है, अनेक स्थान दूसरोंके द्वारा अपनाये जा चुक है। कई प्रसिद्ध स्थानोपर जैनमूर्तियाँ दूसरे देवताओके रूपमें पूजी हाईका भी सूचक है। रक्षाबन्धन के दिन गरुड या प्रकाशको विजय नागो अथवा विकार पर हुई थी।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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