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________________ 4 " विविध ३०५ लिए परस्परमे क्षमायाचना करते है । जो लोग दूर देशान्तर में बसते है उन्हे पत्र लिखकर क्षमायाचना की जाती है । 5 २० - इन दिनों प्राय सभी स्त्री-पुरुष अपनी अपनी शक्तिके अनुसार व्रत उपवास वगैरह करते है । कोई कोई दसों दिन उपवास करते है, बहुत से दसों दिन एक बार भोजन करते है। इन्ही दिनोंमें भाद्रपद शुक्ला दशमीको सुगन्धदशमी पर्व होता है, इस दिन सब जैन स्त्री पुरुष एकत्र होकर मन्दिरोंमें धूप देनेके लिये जाते है; इन्दौर वगैरह मे यह उत्सव दर्शनीय होता है । भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी अनन्त चतुर्दसी कहलाती है । इसका जैनों मे बड़ा महत्त्व है। जैनशास्त्रोके अनुसार इस दिन व्रत करनेसे बड़ा लाभ होता है । दूसरे, यह दशलक्षण पर्वका अन्तिम दिन भी है, इसलिये इस दिन प्राय सभी जैन स्त्री-पुरुष व्रत रखते है और तमाम दिन मन्दिरमे ही बिताते है । अनेक स्थानोंपर इस दिन जलूस भी निकलता है । कुछ लोग इन्द्र वनकर जलूसके साथ जल लाते है मोर उस जलसे भगवान्‌का अभिषेक करते है । फिर पूजन होता है और, 1 पूजन के बाद अनन्त चतुर्दशीव्रत कथा होती है । जो व्रती निर्जल उपवास नही करते वे कथा सुनकर ही जल ग्रहण करते है । · J श्वेताम्बर सम्प्रदायमें इसे 'पर्युषण' कहते है । साधुओंके लिये दस प्रकारका कल्प यानी आचार कहा है उसमे एक 'पर्युषणा' है । 'परि' अर्थात् पूर्ण रूपसे, उषणा अर्थात् वसना । अर्थात् एक स्थान, पर स्थिर रूपसे वास करनेको पर्युषणा कहते है । उसका दिनमान तीन प्रकारका है । कमसे कम ७० दिन, अधिक से अधिक ६ मास ? और मध्यम ४ मास । कमसे कम ७० दिनके स्थिरवासका प्रारम्भ भाद्रपद सुदी पञ्चमी से होता है। पहले यही परस्परा प्रचलित थी किन्तु कहा जाता है कि कालिकाचार्यने चौथकी परस्परा चालू की। उस दिनको 'सवछरी' यानी सांवत्सरिक पर्व कहते है । सावत्सरिक पर्व अर्थात् त्यागी साधुओके वर्षावास निश्चित करनेका दिन । सांव
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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