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________________ जैन साहित्य २३६ दिगम्बर साहित्यमे हिन्दी ग्रन्थ की संख्या भी बहुत है । इधर ३०० वर्षों में अधिकांश ग्रन्थ हिन्दीमे ही रचे गये है । जैन श्रावकके लिए प्रतिदिन स्वाध्याय करना आवश्यक है। अत. जन-साधारणकी। भाषामे जिनवाणीको निवद्ध करनेकी चेष्टा प्रारम्भसे ही होती आयी है। इसीसे हिन्दी जैन साहित्यमे गद्यग्रन्थ बहुतायतसे पाये जाते है। लगभग सोलहवी शताब्दीसे लेकर हिन्दी गद्य ग्रन्य जैन साहित्यमे उपलब्ध है और इसलिए हिन्दी भाषाके क्रमिक विकासका अध्ययन करनेवालोके लिए वे बड़े कामके है। सैद्धान्तिक ग्रन्थोंमे ऊपर गिनाये गये तित्त्वार्थसूत्र, सर्वार्थ सिद्धि, राजवातिक, गोमट्टसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय, समयसार, षट्खण्डागम, कषाय प्राभूत) आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोकी हिन्दी टीकाएं मौजूद है। न्याय ग्रन्थोमे भी परीक्षामुख, आप्तमीमासा, प्रमेयरत्नमाला, न्यायदीपिका और तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक जैसे महान ग्रन्थोकी हिन्दी टीकाएँ उपलब्ध है। इन टीका ग्रन्योका अध्ययन केवल हिन्दी भाषाभाषी प्रान्तोमे ही प्रचलित नहीं है किन्तु गुजरात, महाराष्ट्र और सुदूर दक्षिण प्रान्तके जैनी भी उनसे लाभ उठाते है। इस तरह जैनधर्मका साहित्य हिन्दी भाषाके प्रचारमें भी सहायक रहा है। प्राय सभी पुराण ग्रन्थो और अनेक कथाग्रन्थोंका अनुवाद हिन्दी भाषामें हो चुका है। अनुवादका यह कार्य सर्वप्रथम जयपुरके विद्वानोके द्वारा दुढारी भाषामे प्रारम्भ किया गया था। आज भी उनके अनुवाद उसी रूपमे पाये जाते है। यह तो हुई अनुवादित साहित्यकी चर्चा । स्वतंत्ररूपसे भी हिन्दी गद्य और हिन्दी पद्य दोनोमे जैनसिद्धान्तको निबद्ध किया गया है । गद्य-साहित्यमे प० टोडरमलजीका मोक्षमार्ग-प्रकाशक ग्रन्थ और पद्यसाहित्यमे प० दौलतरामजीका छहढाला जैनसिद्धान्तके अमूल्य रत्न है। प० टोडरमलजी, प० दौलतराम, प. सदासुख, पं० बुधजन, प० द्यानतराय, भैया भगवतीदास, पं. जयचन्द आदि अनेक विद्वानोने अपने समयकी हिन्दी भाषामे गद्य अथवा पद्य अथवा दोनोंमें अपनी
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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