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________________ जैन ध मे १, इतिहास १-आरम्भ काल एक समय था जव जैनधर्मको बौद्धधर्मकी शाखा समझ लिया ग. था। किन्तु अब वह भ्रान्ति दूर हो चुकी है और नई खोजोके फलस्वर यह प्रमाणित हो चुका है कि जैनधर्म बौद्धधर्मसे न केवल एक :: और स्वतत्र धर्म है किन्तु उससे बहुत प्राचीन भी है। अब अन्ति तीर्थंकर भगवान महावीरको जैनधर्मका संस्थापक नहीं माना जा और उनसे अढाई सौ वर्ष पहले होनेवाले भगवान पार्श्वनाथको ए ऐतिहासिक महापुरुष स्वीकार कर लिया गया है। इस तरह १इस भ्रान्तिको दूर करनेका श्रेय स्व० डा. हर्मान याकोबीको प्राप्त है उन्होने अपनी जनसूत्रोको प्रस्तावनामें इसपर विस्तृत विचार किया है। लिखते हैं-"इस बातसे अब सब सहमत है कि नातपुत्त, जो महावीर अथर वर्षमानके नाम से प्रसिद्ध है, बुद्धके समकालीन थे। बौद्धग्रन्थोमें मिलनेवा उल्लेख हमारे इस विचारको दृढ करते है कि नातपुत्तसे पहले भी निम्रन्योक जो आज जैन अथवा आईतके नामसे अधिक प्रसिद्ध है, अस्तित्व था। ज बौद्धधर्म उत्पन्न हुआ तब निर्गन्योका सम्प्रदाय एक बड़े सम्प्रदायके रूपमें गिर जाता होगा। बौद्ध पिटकोमें कुछ निर्ग्रन्थोका बुद्ध और उसके शिष्योंके विरोधी रूपमें और कुछका वृद्धके अनुयायी बन जानेके रूपमें वर्णन आता है। उस ऊपरसे हम उक्त वातका अनुमान कर सकते है। इसके विपरीत इन ग्रन्थो किसी भी स्थानपर ऐसा कोई उल्लेख या सूचक वाक्य देखने में नही आता निप्रन्योका सम्प्रदाय एक नवीन सम्प्रदाय है और नातपुत्त उसके सस्थापक है इसके ऊपरसे हम अनुमान कर सकते है कि बुद्धके जन्मसे पहले अतिप्राची लसे नियोंका अस्तित्व चला आता है।"
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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