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________________ चारित्र १७७ उसे अवसर अवश्य देना चाहिये । प्राणरक्षाके लिये असत्य बोलनेके मूलमे यही भाव है। - असत्य वचनके अनेक भेद है, जैसे-१-मनुष्यके विषयमे झूठ बोलना। शादी विवाहके अवसरोंपर विरोधियोके द्वारा इस तरहके झूठ बोलनेका प्रायः चलन है। विरोधी लोग विवाह न होने देनेके लिये किसीकी कन्याको दूपण लगा देते है, किसीके लडकेमे बुराइयां वतला देते है। २-चौपायोंके विषयमे झूठ बोलना । जैसे, थोड़ा दूध देनेवाली गायको बहुत दूध दनेवाली बतलाना या बहुत दूध देनेवाली गायको थोड़ा दूध देनेवाली बतलाना । ३-अचेतन वस्तुओंके विषयमे झूठ वोलना। जैसे, दूसरेकी जमीनको अपनी बतलाना या टैक्स वगैरहसे वचनेके लिये अपनी जमीनको दूसरेकी बतलाना। ४-लाचके लोभसे याई होनेसे किसी सच्ची घटनाके विरुद्ध गवाही देना। ५-अपने पास रखी हुई कित्तीकी धरोहरके सम्वन्धमे असत्य बोलना। ये और इस तरहके अन्य झूठ वचन गृहस्थको नहीं बोलना चाहिये। इनसे मनुष्यका विश्वास जाता रहता है और अनाचारको भी प्रोत्साहन मिलता है, तथा जिनके विषयमें झूठ बोला गया है उन्हे दुख पहुंचता है और वे जीवनके वैरी बन जाते है। जो लोग कारवार रुजगारमे अधिक झूठ बोलते है और सच्चा व्यवहार नहीं रखते, बाजारमे । उनकी साख जाती रहती है। लोग उन्हें झूठा समझने लगते है और उनसे लेन देन तक बन्द कर देते है।। वहुतसे लोग झूठ बोलनेकी आदत न होनेपर भी कभी कभी क्रोध आकर झूठ बोल जाते है, कुछ लोग लोभमें फंसकर झूठ बोल जाते है, कुछ लोग पुलिस वगैरहके डरसे झूठ बोल जाते है और कुछ लोग हसी मजाकमे झूठ बोल जाते है । अत. सत्यवादीको क्रोध, लालच और भयसे भी बचना चाहिये और हंसी मजाकके समय तो एकदम सावधान रहना चाहिये; क्योकि हंसी मजाकमें झूठ बोलनेसे लाभ तो कुछ भी नही होता, उल्टे झगड़ा टंटा बढ़ जानेका ही भय रहता है और आदत भी विगड़ती है।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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