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________________ की गयी है। इसीलिए स्यादवाद को सप्तमीनब भी कहते हैं। __ स्याद्वाद में वस्तु-जमत के बारे में एक निश्चित दृष्टिकोण है, इस बात को जनधर्म के मालोचक बिलकुल नहीं समझ पाते। वे सात तर्कवाक्यों की योजना के महत्त्व को भी ठीक से नहीं समझ पाते। चूंकि प्रत्येक कथन के साथ स्वाद (शायद) उपसर्ग जोड़ा जाता है, इसलिए इसके आलोचकों का कहना है कि यह वस्तु-जगत के बारे में जैनों के संदेहवादी दृष्टिकोण का परिचायक है। सात तर्कवाक्यों में से किसी एक केहद रूप से सत्य होने का दावा नहीं किया जाता, इसलिए ये मालोचक जैनों पर यह आरोप लगाते हैं कि वस्तु-जगत के बारे में उनका अपना कोई अभिमत नहीं है। परन्तु वस्तु-जगत् के बारे में जैनों का एक विशिष्ट मत अवश्य है, और वह यह है कि, वस्तु-जगत् के बारे में कोई भी एक निश्चित मत नहीं हो सकता। सप्तभंगीनय से यह बात स्पष्ट हो जाती है। जनों की मान्यता है कि ये सात तर्कवाक्य साथ मिलकर हमें वस्तु-जगत् का बोध कराते हैं। ताकिक दृष्टि से, एक कथन एक विचार या मत का द्योतक होता है, और जब वस्तु-जगत् के बारे में निर्णय दिये जाते हैं और तर्कवाक्य प्रस्तुत किये जाते हैं, तो उन्हें वस्तु-जगत् के स्वरूपों का खोतक माना जाता है । जैनों के मतानुसार, वस्तु-जगत् के बारे में कोई हढ़ मत संभव नहीं है। इसलिए किसी एक निर्णय से वास्तविकता का बोध संभव नहीं, और इसलिए कोई भी एक कथन ऐसी किसी चीज की पूर्ण व्याख्या नहीं कर सकता जो अत्यंत जटिल और अनेकान्त हो। __ उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सामान्य रूप से स्याद्वाद नयवाद का परिपूरक है। नयवाद में वस्तु-जगत् के प्रति विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया है, तो स्याद्वाद में संश्लेषणात्मक दृष्टिकोण । चूंकि विश्लेषण और संश्लेषण एक-दूसरे से असम्बद्ध नहीं होते, इसलिए शुद्ध विश्लेषणात्मक दृष्टि में भी हम संश्लेषण के तत्त्व देखते हैं, और उसी प्रकार वस्तु-जगत् के संश्लेषणात्मक दृष्टिकोण में विश्लेषण के तत्व देखते हैं । स्पष्ट शब्दों में : नयवाद के अनुसार, किसी भी एक मत को विशेष महत्व देना दोषपूर्ण होगा। अन्य शब्दों में, विभिन्न मतों का अपना महत्त्व होता है, और इनमें से प्रत्येक वास्तविकता का परिचायक होता है ; इसलिए ये सब मिलकर हमें वास्तविकता का बोध कराते हैं। इसी प्रकार, स्याबाद में अभिधान के पर्यायों के संश्लेषणात्मक स्वरूप को महत्त्व दिया जाता है। स्यादवाद की स्पष्ट धारणा के अनुसार, संश्लेषित विभिन्न कवनों में से प्रत्येक से वस्तु-जगत के बारे में कुछ जानकारी मिलती है। अब हम स्माद्बाद की कुछ विस्तार में पर्चा करेंगे। अभिधान के सात पर्याय हैं: 1. द्रव्य हो सकता है (स्याद् अस्ति द्रव्यम्)
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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