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________________ ७६ ] जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व की प्रधानता है। दूसरा निष्कर्ष यह है कि प्राणियों की एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय- ये पांच जातियां बनने में दोनों प्रकार की इन्द्रियां कारण हैं। फिर भी यहाँ द्रव्येन्द्रिय की प्रमुखता है | एकेन्द्रिय : में - अतिरिक्त भाषेन्द्रिय के चिह्न मिलने पर भी वे शेष बाह्य इन्द्रियों के अभाव . में पञ्चेन्द्रिय नहीं कहलाते " " | : मानस-ज्ञान और संज्ञी - असंज्ञी . इन्द्रिय के बाद मन का स्थान है। यह भी परोक्ष है। पौद्गलिक मन के बिना इसका उपयोग नहीं होता । इन्द्रिय ज्ञान से इसका स्थान ऊंचा है I प्रत्येक इन्द्रिय का अपना-अपना विषय नियत होता है, मन का विषय अनियत । वह सब विषयों को ग्रहण करता है । इन्द्रिय ज्ञान वार्तमा निक - होता है, मानस शान त्रैकालिक । इन्द्रिय-ज्ञान में तर्क, वितर्क नहीं होता । मानस ज्ञान आलोचनात्मक होता है २२ मानस प्रवृत्ति का प्रमुख साधन मस्तिष्क है। कान का पर्दा फट जाने पर कर्णेन्द्रिय का उपयोग नहीं होता, वैसे ही मस्तिष्क की विकृति हो जाने पर मानस शक्ति का उपयोग नहीं होता । मानस ज्ञान गर्भज और उपपातज पंचेन्द्रिय प्राणियों के ही होता है। इसलिए उसके द्वारा प्राणी दो भागों में बंट जाते हैं—संज्ञी और संशी या समनस्क और श्रमनस्क । द्वीन्द्रिय आदि प्राणियों में श्रात्म-रक्षा की भावना, इष्ट-प्रवृत्ति, अनिष्ट निवृत्ति, आहार भय आदि संज्ञाएँ, संकुचन, प्रसरण, शब्द, पलायन, श्रागति, गति, आदि- चेष्टाएं होती है-- ये मन के कार्य हैं। तब फिर वे श्रसंज्ञी क्यों ? बात सही है। इष्ट प्रवृत्ति और अनिष्ट निवृत्ति का संज्ञान मानस ज्ञान की परिधि का है, फिर भी वह सामान्य है—- नगण्य है, इसलिए उससे कोई प्राणी संज्ञी नहीं बनता । एक कौड़ी भी धन है पर उससे कोई धनी नहीं कहलाता । जिनमें दीर्घकालिकी संज्ञा मिले, जो भूत, वर्तमान और शृङ्खला को जोड़ सके इन्द्रिय और मन संशी वही होते हैं भविष्य की शान 231 पूर्व पंक्तियों में इन्द्रिय और मन का संक्षिप्त विश्लेषण किया। उससे इन्हीं का स्वरूप स्पष्ट होता है। संशी और असंशी के इन्द्रिय और मन का
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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