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________________ जैन दर्शन के मौलिक तत्व | परमाणुओं का पुल होता ही नहीं। यह आपक ( उनको खपाने वाला-गर करने वाला) होता है। (२) मिथ्या दर्शनी एक पुञ्जी होता है। दर्शन-मोह के परमाणु उसे सघन रूप में प्रभावित किये रहते हैं। (३) सम्यग् मिथ्या दर्शनी द्विपुञ्जी होता है। दर्शन-मोह के परमाणुओं का शोधन करने चल पड़ता है। किन्तु पूरा नहीं कर पाता, यह उस समय की दशा है। (४)क्षायोपशमिक-सम्यक् दर्शनी त्रिपुंजी होता है। प्रकारान्तर से मिथ्यात्व मोह के परमाणु क्षीण नहीं होते, उसी दशा में सम्यग् दृष्टि (बायोपशमिक सम्यग दृष्टि) त्रिपुञ्जी होता है। मिथ्यात्व पुज के क्षीण होने पर वह द्विपुञ्जी, मिश्र पुञ के क्षीण होने पर एक पुजी और सम्यक्त्व-पुञ्ज के क्षीण होने पर अपुजी ( क्षायिक सम्यग् दृष्टि ) बन जाता है। मिश्र-पुञ्ज संक्रम दर्शन-मोह के परमाणुओं का पुञ्जीकरण, उनका उदय और संक्रमण परिणाम-धारा की अशुद्धि, अशुद्धि-अल्पता और शुद्धि पर निर्भर है। परिणाम शुद्ध होते हैं मोह का दबाव ढीला पड़ जाता है। तब शुद्ध पुञ्ज का उदय रहता है। परिणाम कुछ शुद्ध होते हैं ( मोह का दबाव कुछ ढीला पड़ता है ) तब अर्ध-शुद्ध पुञ्ज का उदय रहता है। परिणाम अशुद्ध होते हैं ( मोह का दबाव तीव्र होता है ) तब अशुद्ध-पुञ्ज का उदय रहता है। मिथ्यात्व परमाणुओं की त्रिपुजीकृत अवस्था में जिस पुञ्ज की प्रेरक परिणाम-धारा का प्राबल्य होता है, वह दूसरे को अपने में संक्रान्त कर लेती है। सम्यग दृष्टि शुद्धि की जागरणोन्मुख परिणाम-धारा के द्वारा मिथ्यात्व पुज को मिश्र पुज में और जागृत परिणाम-धारा के द्वारा उसे सम्यक्त्व पुञ्ज में संक्रान्त करता है। तात्पर्य यह है कि मिथ्यात्व पुञ्ज का संक्रमण मिश्र पुज और सम्यक्त्व पुञ्ज दोनों में होता है। मिश्र पुज का संक्रमण मिथ्यात्व और सम्यक्त्व-इन दोनों पुजों में होता है। मिथ्या दृष्टि सम्यक् मिथ्यात्व पुज को मिथ्यात्व पुञ्ज में संकान्त करता है। सम्यक्त्वी उसको सम्यक्त्व पुञ्ज में संक्रान्त करता है। मिभष्टि
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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