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________________ नपुंसक-वेदवत् हास्यवत् नपुंसक-वेदवत् नपुंसक-वेदवत् हास्यवत् नपुंसक वेदवत् १.२ कृष्ण-धर्म, तिक रस नपुंसक-वेदवत् १०४ : सुरभि गन्ध, प्रशस्त विहायोगति हास्यवत् १०६ दुरमिगन्ध, अप्रशस्त विहायोगति नपुंसक-वेदवत् ११० ककंश-स्पर्शनाम, गुरु-स्पर्शमान, शीत-स्पर्शनाम, लक्ष-स्पर्शनाम । नपुसक वेदवत् ११४ मृदु-स्पर्शनाम, लघु-स्पर्शनाम हास्यवत् स्निग्ध-स्पर्शनाम, उष्ण-स्पर्शनाम । (पराघात नाम, उच्छवास नाम, आतप नाम उद्योतनाम, गुरु लघु नाम, निर्माण नाम, मपुंसक वेदवत् उपघात नाम सूक्ष्म नाम, अपर्याप्ति नाम, साधारण नाम} तीन विकलेन्द्रियवत् असनाम, बादर-नाम, प्रत्येक नाम पर्याप्त-नाम, स्थावर-नाम, अस्थिर नाम नपुंसक-वेदवत् अशुभ-नाम, दुभंग-नाम, दुःखर-नाम | अनादेय-नाम, अयशः कीर्तिनाम। ) " स्थिर-नाम, सुम-नाम, शुमग-नाम. हमार सुस्वर-नाम, आदेय-नाम यशः कीर्ति नाम, उच्चगोत्र नीच-गोत्र नसक-वेदवत् १ve अन्तराय पंचक अन्तर्-मुहूर्त जैन दर्शन के मौसिक तत्व ३ विकलेन्द्रियवत् नपुंसक-वेदवत् १० कोटा कोटि सागर नपुंसक वेदवत् ३० कोटा कोटि सागर [१४
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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