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________________ जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व [१११ (ङ) मनोह स्पर्श, (च) सुखित मन, (ङ) सुखित बाणी, (ज) सुखित काम | (२) सात वेदनीय -- दुःखानुभूति के निमित्त कर्म पुद्गल । (क) अमनोश शब्द, ( ख ) अमनोश रूप, ( ग ) श्रमनोश गन्ध, (घ) अमनोश रस, (ङ) अमनोज्ञ स्पर्श, (च) दुःखित मन, (ख) दुःखित वाणी, ( ज ) दुःखित काय । ४ - मोहनीय - आत्मा को मूढ़ बनाने वाले कर्म-पुद्गल । (क) दर्शन - मोहनीय - सम्यक दृष्टि को विकृत करने वाले कर्म-पुद्गल । ( १ ) सम्यक्व वेदनीय - श्रपशमिक और क्षायिक मम्यक दृष्टि के प्रतिबन्धक कर्म पुद्गल | (२) मिध्यात्व वेदनीय - - सम्यक दृष्टि ( क्षायोपशमिक ) के प्रतिबन्धक कर्म-पुद्गल । (३) मिश्र वेदनीय-तत्त्व श्रद्धा की दोलायमान दशा उत्पन्न करने वाले कर्म-पुद्गल । (ख) चारित्र मोहनीय - चरित्र - विकार उत्पन्न करने वाले कर्म- पुद्गल । (१) कषाय- वेदनीय - राग द्वेष उत्पन्न करने वाले कर्म-पुद्गल । अनन्तानुबन्धी क्रोध -- पत्थर की रेखा ( स्थिरतम ) " अनन्तानुवन्धी माया - त्रांस की जड़ ( वक्रतम ) लोभ - कृमि - रेशम ( गाढ़तम रंग ) " अप्रत्याख्यान क्रोध - मिट्टी की रेखा 99 93 95 मान - पत्थर का खम्भा ( दृढ़तम ) "" संज्वलन क्रोध --- जल- रेखा ( अस्थिर तात्कालिक ) मान-लता का खम्भा ( लचीला ) 35 در मानहाड़ का खम्भा माया- मेंढ़े का सींग लोभ - कीचड़ माया- छिलते बांस की छाल ( स्वल्पतम वक्र ) लोभ-हल्दी का रंग ( तत्काल उड़ने वाला ( रंग )
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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