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________________ १५ [ ] प्रवचन सारोबार में कालमान इस प्रकार है:चर्विशतिस्तव श्लोक चरण उच्छवास देवसिक रात्रिक १२३ पाक्षिक ७५ चार्मासिक २० सांवत्सरिक ૨૫૨ १००८ विजयोपदया में कालमान निम्न प्रकार है :चतुर्विशतिस्त्व श्लोक चरण उच्छवास ५. १२५ ४० देवसिक ४ २० ३०० ४०० रात्रिक २ १२३ पाक्षिक १२ चातुर्मासिक .१६ १०० ४०० सांवत्सरिक २० १२५ ५०० ५०० इस प्रकार नेमिचन्द्र और अपराजित दोनों आचार्यों की उच्छवास संख्या भिन्न रही है। अमितगवि भावकाचार के अनुसार देवसिक कायोत्सर्ग में १०८ तथा रात्रिक कायोत्सर्ग में ५४ उच्छवासों का ध्यान किया जाता है और अन्य कायोत्सर्गों में २७ उच्छवासों का।' २७ उच्छवासों में एक नमस्कार मन्त्र की नौ आवृत्तियों की जाती है। अर्थात् तीन उच्छवासों में एक नमस्कार मन्त्र पर ध्यान दिया जाता है। सम्मव है प्रथम दो-दो वाक्य एकएक उच्छवास में और पाँचवाँ वाक्य एक उच्छवास में। १-मूलाराधना १२११६ सायाने उच्छ्वासशतकं प्रत्यूषसि पंचशवं, पक्षे त्रिशतानि, चतुर्स मासेषु चतःशतानि, पंचशतानि संवत्सरे उच्छनासानाम् । अष्टौ प्रतिक्रमे योगभक्तो तौ, वायुदाहयो। २-अमितगति भाक्काचार ८६८-६९ अष्टोत्तरशतोच्छ्वासः, कायोत्सर्गः प्रतिक्रमे । सान्ध्ये प्रामातिके वार्धमन्यस्तत् सप्तविंशतिः ॥ सप्तविंशतिरुच्छ्वासाः, संसारोन्मूलनक्षमे । संति पंचनमस्कारे, नवधा चिंतिते सति ॥
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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