SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ७० ] जाता है। मानसिक या शारीरिक किसी प्रकार की थकावट हो इस ध्यान से वह दूर हो जाती है और शरीर एवं मन में नई स्फूर्ति आ जाती है। जेन साधना में कायोत्सर्ग के तीन आवश्यक तत्व माने गये हैं। १. स्थान-इसका अर्थ है कायिक निश्चलता, श्वासोच्छवास को छोड़ कर बिना किसी हलचल के एक ही स्थान पर स्थिर रहना। यह खड़े रह कर, बैठ कर या लेट कर तीनों अवस्थाओं में किया जा सकता है। खड़ी अवस्था में साधक सीधा खड़ा हो जाता है और हाथ नीचे की ओर लटके रहते हैं। बैठी अवस्था में पद्मासन या पर्यकासन से बैठ जाता है और हाथों को एक के ऊपर दूसरी हथेली रख कर बीच में जमा लेता है। जो व्यक्ति अशक्त है वह लेटकर भी कायोत्सर्ग कर सकता है। संल्लेखना अर्थात् यावज्जीवन के लिये किया जाने वाला कायोत्सर्ग लेट कर होता है। २. मौन-मौन का अर्थ है मुख से किसी शब्द का उच्चारण न करना । ३. ध्यान- इसका अर्थ है मन को किसी एक ही विषय में स्थिर करना। इसके लिये शास्त्रों में अनेक विषयों का प्रतिपादन किया गया है। कायोत्सर्ग के इन तीन तत्वों में मोन सर्वत्र एक सा है। किन्तु शारीरिक स्थिति सर्वत्र एक सी नहीं होती। ऊपर उसके तीन रूप बताये जा चुके हैं। इसी प्रकार मानसिक चिन्तन के भी अनेक स्तर है। कहीं स्थूल वस्तु का चिन्तन किया जाता है और कहीं सूक्ष्म का। इन विविधताओं को लेकर कायोत्सर्ग के ह भेद किये जाते हैं। १-उत्सृत उत्सृत शारीरिक स्थिति खड़े होकर मानसिक चिन्तन धर्म ध्यान, शुक्ल ध्य न २-उत्सृत शारीरिक स्थिति खड़े होकर मानसिक चिन्तन शून्य ३-उत्सृत निषण्ण शारीरिक स्थिति खड़े होकर मानसिक चिन्तन आत-रौद्र ध्यान ४-निषण्ण उत्सत शारीरिक स्थिति बैठ कर मानसिक चिन्तन धर्म-शुक्ल ध्यान ५-निषण्ण - शारीरिक स्थिति बैठ कर मानसिक चिन्तन चिन्तन शून्य दशा ६-निषण्ण निषण्ण शारीरिक स्थिति बैठ कर मानसिक चिन्तन आर्त-रौद्र ध्यान
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy