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________________ 1 ३४ ] का और महावीर स्वामी के जीवन का मर्म समझकर हम जैन संस्कृति का हाद प्रकट करें। इसकी उसमें क्षमता भी है। आवश्यकता इतना ही है कि जैन विचार को पेशानिक रूप देकर समाजशास्त्रीय आधार से आगे बढ़ाया बाय एवं विभिन्न मानव-समूहों के अांतर मम्बन्धों को इस तरह करणा-शक्ति है अनुमाणित किया जाय कि विग्रह नहीं, संग्रह हो, विघटन नहीं, संगठन हो, वनाष नहीं, सारल्य हो और सामाजिक वृत्तियों के पोषण के साथ श्रमण संस्कृति के लिए प्राण स्वरूप “साम्य" का जीवनगामी अनुसरण हो। जहाँ संस्कृति है, वहाँ संस्कारमुक्त सामाजिक कृति अनिवार्य है। इसी के साथ जब साम्बभाव, समता जुड़ आती है, तो समाज-शास्त्र, मानस-शास्त्र व अर्थशास्त्र से युक्त मानव-शास्त्र की निर्मिति होती है, जो आज के युग की मांग है । श्रमण संस्कृति मानवता से युक्त संस्कृति है, पर उसका हार्द आज प्रकट नहीं हो पा रहा है। उसी का आहान आज का युग कर रहा है। आधार भूत संदर्भ ग्रन्थ १. Living Relegions of the world, -Fredre spiegelberg २. Philasophis of India -Zimmer ३. Relegions of India --Max Weber ४. दशवेकालिक सूत्र ५. दशवकालिक सूत्र ( संतबालजी) ६. सूत्रकृवाङ्गम्-संपादक अंबिकादत्त ओझा .. निन्थ प्रवचन : मुनि चौथमलजी ८ अनुकंपा चौपाई : आचार्य मिक्षु ६. अमर कोष : १०. तत्वार्य सूत्र : पं० सुखलालजी ११. जैन दर्शन के मौलिक तत्व : मुनि नथमलजी १२. महावीर सिद्धांत, अमर मुनिजी १३. महावीर वाणी (गुजराती) १४. महावीर वर्षमान : डा. जगदीशचन्द्र जैन १५. धर्म और संस्कृति । सम्पादक जमनालाल जैन - भारतीय संस्कृति की दो धाराएं : डा. इन्द्रचन्द्र, एम.ए.
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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