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________________ [ १४५ ] आगमों से पूर्ण रूप से मेल नहीं खाते। कहीं अध्ययनों के नामों में अन्तर है तो कहीं अन्य किसी बातों में। इससे यह भी सम्भव है कि पुरानी परम्परा की इन सूत्रों में जैसी भी वह प्राप्त थी, स्थान दे दिया गया। आश्चर्य की बात है कि इस प्रकार से एक अंग सूत्र जैसा विशिष्ट ग्रन्थ विच्छेद हो तो. उसका उल्लेख तक नहीं और न उसके बदले में दूसरा ग्रन्थ उसीके नाम से प्रतिष्ठित हुआ, उसे कब व किसने बनाया और स्थानापन्न किया, इसका मी किसी ने कहीं भी उल्लेख तक नहीं किया । छठी शताब्दी के प्रारम्भ में लिपिबद्ध किये हुये अन्य अंग सूत्रादि सुरक्षित रह गये और केवल १०वां अंग ही लुप्त हो गया यह बात अखरती अवश्य है। विशेषतया जब कि उसके लुप्त होने के कारण तक का कहीं भी उल्लेख तक नहीं मिलता । अब हमें सोचना यह है कि हम इस बात का पता कैसे लगायें कि वर्तमान में उपलब्ध प्रश्न व्याकरण कब प्रकाश में आया ? मोटे तौर पर तो यही कहा जा सकता है कि आगमों के लिपिबद्ध किये जाने के समय तक प्राचीन प्रश्न व्याकरण विद्यमान होना चाहिये । अतः छठी शताब्दी के बाद ही वर्तमान प्रश्न व्याकरण की रचना हुई होगी और टीकाकार के समय तो प्राचीन प्रश्न व्याकरण तो उपलब्ध था ही नहीं और वर्तमान प्रश्न व्याकरण ही उन्हें प्राप्त था । इसलिये छठी से १२ वीं शताब्दी के बीच प्राचीन आगम का लुप्त होना और वर्तमान आगम का प्रकाश में आना सिद्ध होता है । पर यह बीच का अन्तर काफी लम्बा है। इसलिए हमें कुछ और गहराई से खोज करने की आवश्यकता प्रतीत होती है। मेरी राय में इसके निम्नोक्त उपाय हैं १-- उपलब्ध प्रश्न व्याकरण के पाठ की तुलना अन्य आगम आदि ग्रन्थों से की जाय । और यह देखा जाय कि कौन-कौन से प्राचीन आगम से इस सूत्र के पाठ कहाँ-कहाँ कितने अंश में मेल खाते हैं। भाषा की दृष्टि से शब्द रूप आदि में कोई अन्तर है या नहीं, अर्थात् अन्य आगमों से किन-किन बातों में अन्तर आता है । शैली आदि की दृष्टि से भी जहाँ जो अन्तर हो उस पर बारीकी से विचार किया जाय । इस ग्रन्थ में ५ आश्रवों और अहिंसा के जो अनेक पर्यायवाची नाम आये हैं उनमें कौन से नाम निरूपण में भी कोई बात ऐसी उल्लिखित हो तो इसके निर्माण - समय का अनुमान किया जा सके। कितने पुराने हैं। विषय ध्यान दिया जाय जिससे प्राचीन प्रश्न व्याकरण में जो-जो विषय थे उन विषयों का निरूपण चाहे संक्षेप में ही हो पर किन-किन ग्रन्थों में व किस रूप में उन विषयों की चर्चा
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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