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________________ [ १३० ] माणु से भिन्न होता है। परमाणुओं के परस्पर आकर्षण से संसार पैदा होता है और उन्हीं के विभाग से वस्तुओं का नाश होता है।" जैन-दर्शन' में भी अविभाज्य 'सत्' को परमाणु कहा गया है। तथा उसका स्वरूप बतलाते हुए कहा है--"वह सूक्ष्म, नित्य, एक रस, एक गन्ध, एक वर्ण और दो स्पर्श वाला होता है तथा परमाणु परस्पर कई दृष्टियों से एक रूप होते हुए भी कई गुणों की अपेक्षा भिन्न भी होते हैं।"3 परमाणुओं के संयोग से स्कन्ध बनता है। यह लोक भी स्कन्धों का ही परिणाम है । इसलिये परमाणुओं के संयोग से सृष्टि की रचना और वियोग से विनाश; यह तथ्य किसी अपेक्षा से जैन-दर्शन को भी मान्य है। तत्वद्वयी और आत्मा का अस्तित्व सृष्टि के अंगभूत प्रधान रूप से दो ही तत्त्व हैं-जड़ और चेतन । ऐमा पाश्चात्य दार्शनिकों ने भी सीधे ढंग से व प्रकारान्तर से स्वीकार किया है। आधुनिक युग के महान दार्शनिक रेने डेकार्ट ने दो तत्त्व माने हैं--जड़ और चेतन तथा एक तीसरे तत्त्व जीव के विकसित रूप ईश्वर को माना है। वे आत्मा को स्वतः सिद्ध और स्वप्रकाशी तथा ईश्वर को अनन्त गुणमय मानते हैं और यह भी कहते हैं कि प्रत्येक द्रव्य के गुण और पर्याय भिन्न-भिन्न है। __कथिली ने 'पाश्चात्य दर्शन का इतिहास' में जॉन लोक की मान्यता दी है जो इन्हीं दो तत्त्वों को सिद्ध करती है। जॉन लोक कहता है-"द्रव्य दो प्रकार के होते हैं-शरीर और आत्मा। शरीर ऐसा द्रव्य है जिसका विशेषण है प्रपंच, कठोरता, अभेद्यता, क्रियाशीलता आदि-आदि। शरीर को हम इन्द्रियों द्वारा ग्रहण करते हैं। भौतिक द्रव्य के अतिरिक्त आत्मा की भी सत्ता होती है। आत्मा एक वास्तविक सत्ता है। हमें उसका स्पष्ट प्रत्यय होता है। प्रत्यक्ष विचार शक्ति, संकल्प और शरीर को गतिमय करने की शक्ति, आत्मा १-पाश्चात्य-दर्शनों का इतिहास, ले० गुलाबराय, एम. ए. पृ० ३६ २-अविभाज्यः परमाणुः (जैन सिद्धान्त दीपिका प्र० १ सू०१४) ३-कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः। एक-रस-गन्ध-वों, द्वि-स्पर्श-कार्य-लिंगश्च ॥ ४-तदेकीभाव स्कन्धः (जैन प्र० १ सू. १५) ५-पाश्चात्य दर्शन
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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