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________________ [ १२५ ] तरह वह आधे-आधे महीने पर भोजन करते हुए विहार करता है। कोई श्रमण-ब्राह्मण केवल शाक-मात्र खाता है। सामा खाकर रहता है या केवल नीवार ( तिन्नी), चमला, सेवाल, कण, कॉजी, खली, तृण, गोबर या जंगल के फल-फूल या वृक्ष से स्वयं गिरे हुए फलों को खाकर रहता है। कुछ श्रमण ऐसे भी जो सन का बना कपड़ा धारण करता है, श्मशान के वस्त्र धारण करता है, कफन, फेंके चिथड़े, वल्कल, मृगचर्म, कुश के बनाए वस्त्र, चटाई, मनुष्य के केश का कम्बल, घोड़े के बाल का कम्बल, उल्लू के पंख धारण करता है। सिर और दाढ़ी के बालों को नोचनेवाला नुचवाता भी है। आसन को छोड़ सदा ठलेसरी रहता है। उकड़ बैठने वाला सदा उकडू बैठता है। कांटों पर (ही) बैठता और सोता है। तख्ते पर सोता है। जमीन पर सोता है। एक ही करवट से सोता है। शरीर पर धूल और गर्दा लपेटे रहता है। केवल खुली ही जगह पर रहता है। जहाँ पाता है वहीं बैठ जाता है। मैला खाता है। केवल गरम पानी पीता है। सुबह', दोपहर और शाम तीन बार जल-शयन करता है। नंगा रहता है। उल्लिखित तपस्या में विभिन्न तापमों, श्रमण-निर्गन्थों एवं आजीवक मतावलम्बियों का प्रतिबिम्ब मिलता है। जो भिन्न-भिन्न साधना के व्रती थे। कुछ एक तपस्या प्रकार जेन दर्शन और आजीवक आम्नाय के बहुत करीब है, निशीथ सभाष्य चूर्णि में भी अन्यतीर्थिक श्रमण-श्रमणियों का उल्लेख मिलता है : (१) आजीवक (११) तच्चनिय (२१) पंडरंग (२) कप्पडिय (१२) तच्चणगी (२२) पंडरभिक्खु (३) कव्वडिय (१३) तडिय (२३) रत्तपड (४) कावालिय (१४) तावस (२४) रत्तपडा (५) कावाल (१५) तिडंगीपरिवायग (२५) वणवासी (६) कापालिका (१६) दिसायोक्खिय (२६) भगवी (७) गेम (१७) परिव्वाय (२७) वृद्ध सावक (८) गोव्वय (१८) परिवाजिका (२८) सकशाक्य (e) चरक (१६) पंचगब्बासणीय (२६) सरकव (१०) चरिका (२०) पंचग्गितावय (३०) समण (३१) हदुसरकव।' १-दी. नि. कस्सप सीहनाद सुत्त) ६२-६३ २-नि० चू० मा० २ पृ० ११८, २००
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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