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________________ [ ११८ ] मिलाप इस प्रकार है । जैसे- (१) जीव का अस्तित्व है-कौन जानता है ? अथवा उसके जानने से क्या लाभ? इसी प्रकार छः विकल्प समझने चाहिये । वैसे ही उत्पत्ति के भी भावों की उत्पत्ति है कौन जानता है ? अथवा इसके जानने से क्या लाभ ! शाक्य भी एक अपेक्षा से इसके अन्तर्गत समाविष्ट होते हैं। उनके अभिमत से भी अविशोपचित कर्म बन्धन नहीं होता। उनकी मान्यतानुसार ४ प्रकार के कर्म से कर्मोपचय नहीं होता - ( १ ) परिशेोपचित, (२) अविशोपचित, (३) ईर्यापथ, (४) स्वप्नान्तिक । शाक्यमतानुसार जब पाँच कारण ममुदित होते हैं तभी हिंसा होती है। इनमें से किसी एक की भी न्यूनता में कर्मोपचय नहीं होता । यदि कर्म बन्धन होता भी है तो भित्ति पर प्रक्षिप्त धूलि की भांति स्पृष्ट मात्र होता है। अविशोपचित कर्म बन्धन के अभाव की पुष्टि के लिए यहाँ तक कह दिया गया है कि यदि कोई पिता अरक्तद्विष्ट (शुद्ध) चित्त से पुत्र को मारकर उसका मांस भक्षण करता है फिर भी वह असंयत अथवा मेधावी पाप कर्म से उपलिप्त नहीं होता। इस दृष्टि से वे भी अज्ञान-परिपोषक ठहरते हैं । 1 विनयवादी ::- 8 " विनयेन चरन्ति वैनयिकाः" विनयपूर्वक चलने वाले अथवा केवल विनय से ही स्वर्ग-अपवर्ग मानने वाले। इनकी मान्यता है कि "कल्याणान सर्वेषां भाजनं विनयः " विनय ही सर्व सिद्धि प्रदायक है । इनके ३२ प्रकार है - ( १ ) सुर, (२) राजा, (३) पति, (४) ज्ञाति, (५) स्थविर, (६) अधम, (७) माता, (८) पिता इन आठों की मन से, वचन से, काया से और देशकालोचित दान-प्रदान से विनय करना इस प्रकार इन आठ को चार के गुणन से ३२ प्रकार होते हैं। सूत्रकृतांगसूत्र में अनेक मतवादों का मीमांसा पूर्ण विवेचन किया गया है । पंचमहाभूतवाद, एकात्मवाद, तज्जीब तच्छरीरवाद, अकारकवाद, षष्ठात्मवाद, नियतिवाद, सृष्टिवाद, कालवाद, स्वभाववाद, यदृच्छावाद, प्रकृतिवाद आदि । तज्जीवतच्छरीरवादः - इनका अभिमत है कि पंचभूतों के कायाकार परिणत १ - प्राणी प्राणिशानं घातक - चित्तं च तद्गता चेष्टा । प्राणेश्च विप्रयोगः पञ्चभिरापद्यते हिसा || सू० १|१| बृ० ३६ ५० २ - पुत्तं पिया समारब्म आहारेज्ज असंजए । भुंजमाणो य मेहावी कम्मुणा नोवलिप्पइ ॥ सू० १ १/२, २७ गा० ३- सू० १११२ वृ०-५० २१८ ।
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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