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________________ [ ११६ ] नियतिवादी: नियति को ही सर्वेसर्वा मानते हैं। जो भवितव्यता है वह होकर रहेगी और जो अभाव्य है वह लाख प्रयत्न करने पर भी नहीं होने का । मनुष्य का अपना किया कुछ नहीं होता, सब कुछ नियति पर आश्रित है । " स्वभाववादीः - इनका अभिमत है संसार में जो हमें वैचित्र्य और वैषम्य दृष्टिगत हो रहा है, जैसे कोई सत्ताधीश है, कोई दरिद्र ; कोई सर्वथा स्वस्थ है, कोई व्याधि से पीड़ित ; कोई विद्वन्मूर्धन्य है, कोई मूर्ख भट्टाचार्य, यह सब स्वभावजन्य है । शुभाशुभ कर्मोदय जनित नहीं । उदाहरणार्थ - जैसे एक पाषाण खण्ड पथ में पड़ा पैरों से कुचला जाता है और तज्जातीय इतर पाषाण खण्ड प्रतिमा का आकार पा कुंकुम, चन्दन, अगर, तगर आदि से उपलिप्त एवं सुवासित होता है और जन-जन का अर्चनीय बनता है। इसमें हेतु शुभाशुभ कर्म नहीं, मात्र स्वभाव ही है । और भी जैसे "कांटों में नुकीलापन, मयूर का रंग-विरंगापन और कुक्कुरों का वर्ण विलास कौन रचता है ? ये सब स्वभाव से ही होते हैं ।" I अक्रियावादी:- ये किसी भी पदार्थ को स्थिर नहीं मानते, क्योंकि इनके मतानुसार उत्पत्यनन्तर ही पदार्थ का विनाश हो जाता है। क्रिया स्थिर पदार्थ को लगती है, स्थिर पदार्थ कोई है नहीं, अतः अक्रियावाद का प्ररूपण करते हैं । आत्मा जैसा कोई स्वतन्त्र तत्त्व इन्हें मान्य नहीं है । इनके भी जीव- अजीव, आश्रव-संवर, निर्जरा-बन्ध और मोक्ष इन सात पदार्थों के स्व और पर विकल्प द्वय से काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव और यदृच्छा इन छः के आश्रय से ८४ भेद होते हैं । काल, ईश्वर आदि ५ मतों का हम ऊपर जिक्र कर चुके हैं । यहच्छावाद पर थोड़ा सा विहंगावलोकन कर लें : I यदृच्छावादः – अनभिसंधिपूर्वक अर्थ प्राप्ति को यहच्छा कहा जाता है मात्र अर्थ प्राप्ति को अतर्कित ही उपस्थित मानते हैं। कोई भी क्रिया इनके अभिमत में चिन्तन पूर्वक नहीं होती । उदाहरणार्थ जैसे - काक' का ताड़ से १ - प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः सोऽवइयं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने, ना भाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः ॥ प्र० आ० पृ० १६ २- कण्टकस्य तीक्ष्णत्वं मयूरस्य विचित्रता । वर्णाश्च ताम्रचूडानां स्वभावेन भवन्ति हि ॥ सू० १|१|पृ० २१ । ३ -- अतर्कितोपस्थितमेव सर्वे, चित्रं जनानां सुख दुःखजातम् । areस्य तालेन यथाभिघातो, न बुद्धिपूर्वोऽत्र वृथा भिमानः ॥ "
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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