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________________ [ १०१ ] पानी के भाप का भी ध्वनि की गति पर बड़ा के भाप का घनत्व हवा के घनत्व की अपेक्षा कम मात्रा बढ़ने पर ध्वनि की गति कम हो जाती है। हवा का घनत्व कम हो जाता है। हवा का घनत्व घटने पर ध्वनि की गति तीव्र और बढ़ने पर ध्वनि की गति मन्द हो जाती है । यही कारण है कि झील, नदी के किनारे और वर्षा ऋतु में ध्वनि की गति बढ़ जाती है । इस ऋतु में दूर-दूर तक मेढकों की ध्वनि सुनाई देती है । १ - एक कम्पन में जितना समय लगता है वह कम्पनकाल कहलाता है । २ - एक सैकिण्ड में जितनी बार कम्पन होता वह कम्पनाङ्क है । प्रभाव पड़ता है। पानी होता है । अतः भाप की ४ - एक कम्पन जितनी दूरी को पार करता है वह कम्पन का विस्तार है। ध्वनि की स्थूलता और सूक्ष्मता कम्पनकाल, कम्पनाङ्क व कम्पन-विस्तार पर निर्भर करती है । कम्पनाङ्क जितना अधिक होता है, ध्वनि उतनी ही सूक्ष्म होती है । कम्पनांक कम होता है, ध्वनि स्थूल होती है। पुरुषों के कण्ठो मं कम्पनाङ्क कम होते हैं, महिला के अधिक होते हैं। कम्पनका अधिक विस्तार ध्वनि को तीव्र बनाता है । कम्पन का विस्तार दुगुना कर दिया जाये तो ध्वनि की तीव्रता चौगुनी हो जाती है । यदि कम्पन का विस्तार तिगुना कर दिया जाये तो ध्वनि की तीता नौगुनी हो जाती है और चौगुना करने पर मोलह गुनी । । माध्यम का घनत्व भी ध्वनि की तीव्रता को बढ़ाता है। हाइड्रोजन हल्की गैस है, अतः उसमें मन्द ध्वनि पैदा होती है। कार्बन डाइ आक्साइड हवा की अपेक्षा भारी है, अतः उसमें तीव्र ध्वनि पैदा होती है । कान ध्वनि को सुनते हैं, पर श्रवणीयता की भी सीमा रहती है। कम्पन ध्वनि पैदा होती है । हम हाथ को इधर-उधर हिलाते हैं तब कम्पन तो होता है, पर वह कम्पनाङ्क इतना कम होता है कि उससे उत्पन्न ध्वनि हमें सुनाई नहीं देती । स्वस्थ मनुष्य के कान प्रति सेकेण्ड २० कम्पन की ध्वनि को सुन सकते हैं । कुछ १६ कम्पन की ध्वनि को सुन लेते हैं। लेकिन अधिकांशतः २४ कम्पन प्रति सेकेण्ड की ध्वनि सुनते हैं। कम्पनाङ्क को बढ़ाते जाएं तो एक ऐसी सीमा आ जाती है जहाँ मनुष्य के कानों से सुनना असम्भव हो जाता है। यह सीमा अधिक से अधिक ४० हजार कम्पन प्रति सेकेण्ड तक है । इससे अधिक कम्पनीक को सुन नहीं सकते। कुत्ते के कान इससे आगे भी सुन सकते हैं। १ - सामान्य भौतिक विज्ञान |
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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