SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्या व्रात्य भ्रमण थे ? ['मुनिश्री रूपचन्द्रजी ] मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के अवशेषों ने आज पुरातत्व के क्षेत्र में एक नई हलचल उत्पन्न कर दी है। जहाँ आज तक सब प्रकार की प्राचीन सांस्कृतिक स्थापनाएं' आयों के परिकर में ही बंधी हुई थी, खुदाई में प्राप्त इन बहुमूल्य अवशेषों ने यह सिद्ध कर दिया कि आर्यों से पूर्व भी यहाँ एक समृद्ध संस्कृति का अस्तित्व था । तत्कालीन भारतीय न केवल सुसभ्य, सुसंस्कृत और कलाविद ही थे, उनमें आत्म-विद्या का भी पर्याप्त विकास था जिससे कि आर्य लोग सर्वथा अपरिचित थे । अनेक पुरातत्व नेताओं ने यह असंदिग्ध रूप से स्वीकार कर लिया है कि वह संस्कृति आर्य भिन्न थी, साथ ही आर्य संस्कृति से बहुत अधिक समृद्ध और अध्यात्म सम्पन्न थी । ध्यान श्रमण संस्कृति की ओर आकृष्ट हुआ है जो सहस्रों वर्षों के इतिहास में अनेक दुर्धर्ष बाधाओं को सहते हुए भी आज तक अविच्छिन्न रूप से फलतीफूलती रही है। इस आधार पर उनका अनुमान है कि अवश्य ही ये प्राचीन संस्कृति के अवशेष श्रमण परम्परा से ही संबद्ध होने चाहिये। इस कल्पना की सत्यता में प्राप्त अवशेष जहाँ सहायक सिद्ध होंगे, मेरा यह विश्वास है कि ऋग्वेद आदि वेदों से भी हमें उसका पर्याप्त समर्थन मिल सकेगा । प्रस्तुत निबन्ध में मैंने अथर्ववेद में प्रयुक्त 'वात्य' शब्द के आधार पर यह प्रमाणित करने का प्रयत्न किया है कि यह 'वात्य' श्रमण परम्परा से ही सम्बन्धित होना चाहिये । इस निष्कर्ष के बाद उनका वात्य शब्द अपने अर्वाचीन अर्थ में आचार तथा संस्कारों से हीन मनुष्यों के लिये प्रयुक्त होता रहा है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने अभिधान चिन्तामणि Sita में इसका अर्थ देते हुए कहा है "श्रात्यः संस्कारवर्जितः । व्रते साधुः कालो व्रात्यः । तत्र भवो व्रात्यः प्रायश्चित्तार्हः, संस्कारोऽत्र उपनयनं तेन वर्जितः ॥"" किन्तु इस अर्थ का इतिहास मनुस्मृति तथा उत्तरकालीन ब्राह्मण ग्रन्थों से • आगे नहीं जाता । १- अ० चि० ३१५१८
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy