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________________ nir m aliPHPANTrandiinsavet जैन-भक्तिकान्यकी पृष्ठभूमि उल्लेख हुआ है। इनमें से मुकुन्दमहा, सिवमहा और कोट्टक्रियामहाका जनभक्तिसे कोई सम्बन्ध नहीं है। अन्य 'महा' जैन भक्तिसे सम्बन्धित हैं। और उनका विशद वर्णन हुआ है। निशोथचूणिमें लिखा है कि इन्दमहा, खंडमहा, जक्खमहा और भूयमहा क्रमशः आषाढ़, कार्तिक, फाल्गुन और चैत्र मासकी पर्णिमाकी रातको मनाये जाते थे। उनका पूरा कार्य-क्रम नृत्य और गायनके विविध आयोजनोंसे भरा रहता था। आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुनके अन्तिम आठ दिन नन्दीश्वर पर्वके दिन माने जाते हैं । बहत्कथाकोशकी भूमिकामें डॉ. ए. एन. उपाध्येने लिखा है कि नन्दीश्वर पर्वको कौमुदी-महोत्सव भी कहते हैं। इस पर्वके आठवें दिन अर्थात् पूनोंको रथ-यात्राका प्रचलन था । उसी रातको अन्य मतावलम्बियोंकी भाँति जैन भी उत्सव मनाते थे। जैनोंके 'उवासगदसाओ में भूतमाता महोत्सवका विशद वर्णन है। इसी ग्रन्थ में एक पिशाचका भी उल्लेख है। भगवती सूत्रमें लिखा है कि जैन-लोग स्वर्ग-गत किसी महात्माके सम्मानमें स्तूपमह और चैत्यमह मनाते थे। उनमें रुक्खमह, गिरिमह, दरिमह, नदिमह और सागरमह आदिका भी प्रचलन था। इन उत्सवोंसे वे प्रकृतिके प्रति अपना सम्मान दिखाते थे। __ जैनाचार्य हरिपेणने अपने बृहत्कथाकोशमें विध्यदेवीकी उत्पत्ति और उसकी स्मृतिमें मनाये जानेवाले नृत्य-गीतोंका उल्लेख किया है। विध्यदेवी यशोदाको " 9. Nayadhammakaha, N. V. Vaidya Edited, Poona, 1940, chapter 8, p. 100. और भगवती : बेचरदास भगवानदास सम्पादित, जिनागमप्रकाश समा, अहमदाबाद, वि. सं. १९७९-१९८८, ३।१. और Dr. J. C. Jain, Life in Anciert India as depicted in the Jain canons, Bombay, 1947, P. 265. २. जिनदासगनी, निशीथचूर्णि : विजयप्रेमसूरीश्वर सम्पादित, वि.सं. १९९५, १९।११७४ । ३. हरिषेणाचार्य, बृहत्कथाकोश : डॉ. ए. एन. उपाध्ये सम्पादित, सिंधी जैन ग्रन्थमाला, भारतीय विद्या भवन, बम्बई, भूमिका, पृ० ८५ । ४. श्रीमन्मथराय, हमारे कुछ प्राचीन लोकोत्सव : साहित्यभवन लिमिटेड, इलाहाबाद, १९५३ ईसवी, पृष्ठ ५० से उद्धत । ५. भगवती ( भगवतो सूत्र ) : बेचरदास भगवानदास सम्पादित, जिनागम- । प्रकाश समा, अहमदाबाद, वि. सं. १९७९-१९८८, ९।३३ ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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