SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-भक्तिके अंग मंगलाचरणसे हुआ था । उपलब्ध साहित्य में भगवंत पुष्पदन्त भूतबलिके षट्खंडागमका प्रारम्भ इसी मंगलाचरण से हुआ है ।' आचार्य कुन्दकुन्द (पहली शताब्दी विक्रम) ने समयसारका प्रारम्भ भगवान् सिद्ध के मंगलाचरण से किया है ५३ वंदित सम्वसिद्धे, धुवमचलमणोवमं गईं पत्ते । वोच्छामि समयपाहुड, मिणमोसुयकेवली मणियं ॥ २ आचार्य पूज्यपाद ( छठी शताब्दी पूर्वार्ध विक्रम ) ने सर्वार्थसिद्धि का प्रारम्भ एक प्रसिद्ध मंगलाचरणसे किया है । मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् । 3 ज्ञातारं विश्वतस्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥ आचार्य अकलंकदेव ने उमास्वातिके तत्त्वार्थ सूत्रपर राजवास्तिक टीका लिखी थी, उसका प्रथम मंगलाचरण इस प्रकार हैप्रणम्य सर्वविज्ञान महास्पदमुरुश्रियम् । निर्धूतकल्मषं वीरं वक्ष्ये तवार्थवार्त्तिकम् ॥ १. मगवत् पुष्पदन्त भूतबलि, षट्खंडागम : वीरसेनाचार्यकी टीकासहित, डॉ० हीरालाल जैन सम्पादित, वि० सं० १९९६ । २. ध्रुव, अचल और अनुपम गतिको प्राप्त हुए सब सिद्धोंको नमस्कार करके, श्रुतकेवलियोंके द्वारा कथित यह समयसार नामक प्राभृत कहूँगा । आचार्य कुन्दकुन्द, समयसार : पं० परमेष्ठीदास, हिन्दी अनुवादक, श्री पाटनी दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, मारौठ ( मारवाड़ ), फ़रवरी १९५३, पहली गाथा, पृ० ५ । ५. ३. मोक्षमार्गके नेता, कर्मरूपी पर्वतोंके भेदनेवाले और जो विश्वतत्त्वोंके ज्ञाता हैं, उन जैसे गुणोंकी प्राप्तिके लिए मैं उनकी वन्दना करता हूँ । आचार्य पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि : पं० फूलचन्द्र सम्पादित, हिन्दी अनूदित, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, वि० सं० २०१२, पहला श्लोक, पृ० १ । ४. अकलंकदेवको पं० जुगलकिशोर मुख्तार सातवीं शताब्दी विक्रमका और 'जैन प्रथ और ग्रन्थकार' के रचयिता श्री फतेहचन्द्र बेलानी आठवीं शताब्दी विक्रमका मानते हैं । सर्वविज्ञानमय, बाह्य आभ्यन्तर लक्ष्मीके स्वामी और परम वीतराग श्री महावीरको प्रणाम करके तस्वार्थथ। र्त्तिक ग्रन्थको कहता हूँ । आचार्य अकलंक, तस्वार्थवार्त्तिक : पं० महेन्द्रकुमार सम्पादित, अनूदित, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, जनवरी १९५३, पहला श्लोक | हिन्दी
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy