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________________ .३६ जैन- मक्तिकाव्य की पृष्ठभूमि अन्तका पद्य अपभ्रंशमें है। 'रइधू [ १६वीं शताब्दी विक्रम ] ने आत्म-सम्बोधन, दशलक्षण जयमाल और संबोध - पचासिकास्तोत्र अपभ्रंशमें ही रचे थे। महावीरशास्त्र भण्डारकी ग्रन्थसूची में श्री वल्हवके लिखे हुए नेमीश्वर गीतका उल्लेख हुआ है । यह भगवान् नेमीश्वरकी भक्ति में, अपभ्रंशका एक गीत है । गणि महिमासागरके 'अरहंत चौपई' नामके स्तोत्रकी रचना भी अपभ्रंशमें ही हुई है । ४ ३. संस्तव, स्तव और स्तवन परिभाषा संस्तवनं संस्तवः अर्थात् सम्यक् प्रकारसे स्तवन करना ही संस्तव कहलाता है । संस्तव में सम्यक् जुड़ा हुआ है, अन्यथा वह स्तव और स्तवन ही है । यद्यपि संस्तव शब्द, 'वातुर्गुणविकत्थने', 'तेन सह आत्मनः सम्बन्धविकत्थने', 'परिचये प्रत्यासत्ती' और 'स्नेहे' आदि अनेक अर्थोंमें आता है, किन्तु प्रमुखरूपसे उसका सम्बन्ध परिचय और श्लाघासे ही है ।" अभिधान राजेन्द्र कोश में संस्तव के दो भेद माने गये हैं-- सम्बन्धी संधव और वयण संथव । पहलेका अर्थ माता-पिता और सास-ससुर के साथ परिचयसे है, और दूसरेका तात्पर्य श्लाघारूप वचनोंसे है । अमरकोश में 'संस्तवः स्यात् परिचयः' कहकर संस्तवको केवल परिचय रूपमें स्वी S १. स्तोत्रसमुच्चय : चतुरविजय सम्पादित, बम्बई, १९२८ ई०, प्रथम भाग, पृ० ९९ । २. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारोंकी ग्रन्थसूची : भाग ३, कस्तूरचन्द कालीवाल सम्पादित, जयपुर, अगस्त १९५७, परिशिष्ट, ग्रन्थ और अन्धकार : पृ० ३६३ । ३. आमेरशास्त्र भण्डार जयपुरकी ग्रन्थसूची : कस्तूरचन्द सम्पादित, जयपुर, वीर निर्वाण २४७५, महावीर शास्त्र भण्डार के ग्रन्थ : पृ० १८९ । ४. राजस्थानके जैन शास्त्र भण्डारोंकी ग्रन्थ सूची : भाग २, कस्तूरचन्द्र सम्पादित, जयपुर, जनवरी १९५४, पृ० २९४ ॥ ५. अभिधान राजेन्द्र कोश : भाग ७, 'संथव' शब्द | ६. दुविहो संथवो खलु, संबंधीवयणसंथवो चेव । एक्केक्को वि य दुविहो, पुष्वं पच्छा य नायव्वो ॥ अभिधान राजेन्द्र कोश : भाग ७, ४८४वीं गाथा ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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