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________________ miuni... प्राक्कथन श्री प्रेमसागरजी-द्वारा प्रणीत 'जैन-भक्तिकाव्यको पृष्ठभूमि' नामक गवेषणापूर्ण निबन्धका में स्वागत करता हूँ। इसमें लेखकने शास्त्र, पुरातत्त्व और लोकस्थित परम्पराके आधारपर अत्यन्त व्यापक दृष्टिसे जैनधर्मके भक्ति-तत्त्व और भक्तिचर्यापर विचार किया है। भक्तिका जो स्वरूप कवियों-द्वारा काव्यके रूपमें ग्रथित होता है, उसका विकास, धर्म और दर्शनको पृष्ठभूमिके अन्तर्गत ही समझना चाहिए। अतएव इन तत्त्वोंपर सहयुक्त विचारके द्वारा ही उपलब्ध सामग्रीकी उचित व्याख्या सम्भव है । ऐसा हो यहाँ किया गया है। भक्ति, ज्ञान और कर्म-ये तीन साधनाके बड़े मार्ग है । ज्ञान मानव जीवनको किसी शुद्ध अद्वैत तत्त्वकी ओर खींचता है, कर्म उसे व्यवहारको ओर प्रवृत्त करता है; किन्तु भक्ति या उपासनाका मार्ग ही ऐसा है, जिसमें संसार और पर. मार्थ दोनोंको एक साथ मधुर साधना करना आवश्यक है । माधुर्य ही भक्तिका प्राण है। देवतत्त्वके प्रति रसपूर्ण आकर्षण जब सिद्ध होता है, तभी सहज भक्तिकी भूमिका प्राप्त होती है। यों तो बाह्य उपचार भी भक्तिके अंग कहे गये हैं और नवधा भक्ति एवं षोडशोपचार पूजाको ही भक्ति-सिद्धान्तके अन्तर्गत रखा जाता है। किन्तु वास्तविक भक्ति मनको वह दशा है, जिसमें देवतत्त्वका माधुर्य मानवी मनको प्रबल रूपसे अपनी ओर खींच लेता है। यह कहने-सुनने की बात नहीं, यह तो अनुभवसिद्ध स्थिति है । जब यह प्राप्त होती है तब मनुष्यका जीवन, उसके विचार और कर्म कुछ दूसरे प्रकारके हो जाते हैं । सम्भवतः यह कहना उचित न होगा कि ज्ञानकी और कर्मको उच्च भूमिकामें मनुष्य इस प्रकारके मानस-परिवर्तनका अनुभव नहीं करता। क्योंकि साधनाका कोई भी मार्ग अपनाया जाये, उसका अन्तिम फल देवतत्त्वकी उपलब्धि ही है। देवतत्त्वको उपलब्धिका फल है आन्तरिक आनन्दको अनुभूति अर्थात् विषयोंके स्वल्प सुखसे हटकर मनका किसी अद्भत, अपरिमित, भास्वर सुखमें लीन हो जाना । अतएव किसी भी साधनापथको तारतम्यको दृष्टिसे ऊँचा या नोचा न कहकर हमें यही भाव अपनाना चाहिए कि रुचि-भेदसे मानवको इनमें से किसी एकको चुन लेना होता है। तभी मन अनुकूल परिस्थिति पाकर उस मार्गमें ठहरता है। वास्तविक साधना
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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