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________________ जैन सकिके अंग 3 की गयी । इस स्तोत्रको बृहत्पंचनमस्कारस्तोत्र भी कहते हैं । मानतुंगाचार्य ( वि० सातवीं शताब्दी ) का भक्तामर स्तोत्र दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में प्रसिद्ध है । इसमें ४८ श्लोक हैं, जिनके द्वारा भगवान् आदिनाथकी स्तुति की गयी है । विक्रमकी सातवीं शताब्दीके ही विद्वान् भट्टाकलंकने अकलंकस्तोत्र रचा था । बप्पभट्टि [ ई० ७४३-८३८ ] ने सरस्वतीस्तोत्र और चतुर्विंशतिजिनस्तुति की रचना की थी। विक्रमकी आठवीं और नौवीं शतीके कवि धनञ्जयने विषापहारस्तोत्र बनाया था, जिसकी प्रसिद्ध स्तोत्रोंमें गणना है। मुनि शोभन ने भी चतुर्विंशतिजिनस्तुतिका निर्माण किया था, जिसपर उन्हीं के भाई धनपालने टीका लिखी थी। ६ वादिराजसूरि [ ई० की ११वीं शतीका पूर्वार्ध ] ने ज्ञानलोचनस्तोत्र, एकी 9. Dr. Winternitz, History of Indian Literature, Vol. 11, P. 553. N. I. २. ३३ ४. यह स्तोत्र, टीकासहित, कटनी-मुड़वारा, जिला जबलपुरसे वि० सं० १९६३ में प्रकाशित हुआ था । Dr. Winternitz. History of Indian Literature, Vol. II, p. 553, N. I. ५. चतुर्विंशतिका प्रवचूरि सहित: स्तुति संग्रह : बम्बई, १९१२ ई० । और चतुर्विंशतिका: श्रागमोदय समिति, वि० सं० १९८२ । ६. ज्ञानपीठ पूजाञ्जलि : डॉ० ए. एन. उपाध्ये सम्पादित, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, १९५७ ई०, छठा खण्ड, पृ० ४९४-९८ पर प्रकाशित । और काव्यमाला सप्तम गुच्छक : पं० दुर्गाप्रसाद और वासुदेव लक्ष्मण सम्पादित, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १९२६ ई०, पृ० १-१० । ९. पंचस्तोत्र संग्रह पं० पन्नालाल हिन्दी अनूदित, सूरत, पृ० ९१-१२२ । ७. मुनि शोभन, दसवीं शताब्दी ईसवीके उत्तरार्ध में हुए हैं। देखिए Dr. Winternitz, History of Indian Literature, Vol. II. p. 553. ८. पं० नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास : नवीन संस्करण, हिन्दी ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, बम्बई, अक्टूबर १९५६, पृ० ४१० । माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, संख्या २१, पृ०१२४ पर प्रकाशित ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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