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________________ जैन-मक्तकाम्यकी पृष्ठभूमि भक्तका ध्यान एकमात्र स्तुत्य व्यक्तिके विशिष्ट गुणोंपर टिकता है। वह एकाग्रचित्त होकर अपने स्तुत्यके एक-एक गुणको मनोहर शब्दोंके द्वारा व्यक्त करनेमें निमग्न रहता है।" प्राचीन जैन स्तोत्र जैन-भक्त बहुत प्राचीन समयसे स्तुति-स्तोत्रोंकी रचना करते रहे हैं, उनमें कतिपय इस प्रकार हैं प्राकृत-स्तोत्रोंमें गौतम गणधरका 'जयतिहुअण स्तोत्त' सबसे अधिक प्राचीन है। भगवान् महावीरके समवशरणमें प्रविष्ट होते ही गौतमने इसी स्तोत्रसे उनको नमस्कार किया था । आचार्य कुन्दकुन्द,जो कि विक्रमकी पहली शताब्दीमें हुए हैं, 'तित्थयर-शुदि' की रचना की थी। इसमें आठ गाथाएँ हैं, जिनमें प्रथमसे लेकर चौबीसवें तीर्थंकर तककी स्तुति की गयी है। इसे ही श्वेताम्बर समाजमें 'लोगस्स सुत्त' कहते हैं । इसके अतिरिक्त आचार्य कुन्दकुन्दने सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, योगिभक्ति, आचार्यभक्ति और निर्वाणभक्तिका भी निर्माण किया था। ये एक प्रकारसे स्तोत्र ही हैं। मानतुंगसूरिका ‘भयहरस्तोत्त' भी प्राकृत भाषामें है। इसमें २१ पद्य हैं, जो भगवान् पार्श्वनाथकी भक्तिमें समर्पित हुए हैं । मुनि चतुरविजयने मानतुंगको हर्षका समकालीन अर्थात् वि० की सातवीं शताब्दीका माना है। डॉ० विण्टरनित्स उनको ईसाकी तीसरी शतीका मानते हैं। १. देखिए, पं० हीरालाल जैन, 'पूजा, स्तोत्र, जप, ध्यान और लय', भने कान्त, वर्ष १४, किरण ७, पृष्ठ १९४ । २. जयतिहुअण-स्तोत्तका प्रकाशन जैन प्रभाकर प्रिंटिंग प्रेस, रतलामसे हुआ है। ३. पुरातन जैन वाक्य सूची : पं० जुगलकिशोर मुखतार सम्पादित, वीर-सेवा मन्दिर, सरसावा, प्रस्तावना, पृ० १२ । ४. यह स्तुति, 'श्री प्रभाचन्द्राचार्यकृत संस्कृत टीकासहित दशभक्ति', पं० जिनदास पार्श्वनाथ अनूदित, मराठी भाषामें, शोलापुर, पृ० १७-१८, पर प्रकाशित हुई है। ५. भयहरस्तोत्त : जैन स्तोत्र संदोह : द्वितीय भाग, चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद, पृ० १४-२९, पर प्रकाशित हुआ है। ६. देखिए वही : प्रस्तावना, पृ० १३ । 9. Dr. Winter nitz, History of Indian Literature, Val II, P. 549.
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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