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________________ जैन-मतिकाव्यकी पृभूमि था कि वे तेजस्वी, सुजन, सुकृती और तेजःपति भगवान् जिनेन्द्रकी भक्तिसे ही बन सके। भक्ति और अनुराग ___आचार्य पूज्यपादने भक्तिको परिभाषा लिखते हुए कहा है, "अरहंत, आचार्य, बहुश्रुत और प्रवचनमें भावविशुद्धि युक्त अनुराग ही भक्ति है ।" आचार्य सोमदेव का कथन है, "जिन, जिनागम और तप तथा श्रुतमें पारायण आचार्यमें सद्भाव विशुद्धिसे सम्पन्न अनुराग भक्ति कहलाता है। हरिभक्तिरसामृतसिन्धुमें भी लिखा है कि इष्टमें उत्पन्न हुए स्वाभाविक अनुरागको ही भक्ति कहते हैं। महात्मा तुलसीदासने लिखा है, 'कामिहि नारि पिआरि जिमि', अर्थात् जैसे १. सुस्तुत्या व्यसनं शिरो नतिपरं सेवेशी येन ते तेजस्वी सुजनोऽहमेव सुकृती तेनैव तेजःपते ॥ देखिए वही, ११४वाँ पद्य, पृ० १३७ । २. 'अहंदाचार्येषु बहुश्रुतेषु प्रवचने च भावविशुद्धियुक्तोऽनुरागो मतिः' । आचार्य पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि : पं० फूलचन्द्रजी सम्पादित, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, वि० सं० २०१२, ६।२४ का भाष्य, पृ० ३३९ ।। ई. पं० नाथूरामजी प्रेमीने श्री सोमदेवका समय विक्रमकी ग्यारहवीं शता. ब्दीका प्रथम चरण निर्धारित किया है। सोमदेवने यशस्तिलककी रचना चैत्र सुदी १३, शकसंवत् ८८५ [वि० सं० १०१६ ] में समाप्त की थी। देखिए, पं० नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास : नवीन संस्करण, संशोधित साहित्यमाला, बम्बई, अक्टूबर १९५६, पृ० १७९ । ४. जिने जिनागमे सूरौ तपःश्रुतपरायणे । सद्भावशुद्धिसम्पन्नोऽनुरागो भक्तिरुच्यते ॥ Prof. K. K. Handiqui, Yasastilak and Indian Culture, Jair. Sanskriti Samrakshaka Sangha, Sholapur, 1949, p. 262, N. 3. इष्टे स्वारसिकी रागः परमाविष्टता भवेत् । तन्मयी या मवेत् भक्तिः साऽत्र रागात्मिकोदिता ॥ ६२ ॥ . पूज्यपाद श्री रूपगोस्वामी, हरिभक्तिरसामृतसिन्धु : गोस्वामी दामोदरशास्त्री सम्पादित, अच्युत ग्रन्थमाला कार्यालय, काशी, वि० सं० १९८८, पृ० ८७-८८। कामिहि नारि पिआरि जिमि लोमिहि प्रिय जिमि दाम । तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम । महात्मा तुलसीदास, रामचरितमानस: गीताप्रेस, गोरखपुर, पाँचवींभावृत्ति, मझला साइज़, उत्तरकाण्ड, १३० ख वाँ पद्य, पृ.१००२। "--..- Nainam
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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