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________________ H u moniASAALPHAARAA AakaaHARA १७. tayate VN S जैन-मतिकाव्यको पृष्ठभूमि हुई है। टाँगोंके नीचे एक महिष है, जिसपर सिंह झपट रहा है, और उसने महिक्की पूछको अपने मुंहमें पकड़ लिया है, परिणाम-स्वरूप भयके कारण उसकी लाल जिह्वा बाहरको निकल आयी है। इस प्रतिमाको चोकीपर एक लेख खुदा हुमा है, जो जूनावाले लेखसे बिलकुल मिलता-जुलता है, यहांतक कि शब्दावली भी प्रायः एक ही है। श्री रतनचन्दजी अग्रवालका अनुमान है कि जोधपुर संग्रहालयको यह मूत्ति किसी समय जूनाके मन्दिर में विराजमान थी। - डॉ० यू० पी० शाहके मतानुसार पश्चिमी भारतके कुछ मन्दिरोंमें आज भी महिषासुरमर्दिनीकी पूजा होती है। अभी सिंगोलीसे ९ धातु-प्रतिमाएं उपलब्ध हुई हैं, जिनमें एक महिषासुरमर्दिनीकी भी है। इसपर अंकित एक लघु लेखसे प्रमाणित है कि मध्यकालके जैन महिषासुरमर्दिनीके भी भक्त थे। ६. देवी सरस्वतो देवीका बाह्य रूप भारतके सभी धर्म और सम्प्रदाय सरस्वतीको मानते हैं। जैन भी अपवाद नहीं हैं। जैन-शास्त्रोंके अनुसार देवी सरस्वतीके चार हाथ होते हैं । दायीं मोरका एक हाथ अभयमुद्रामें उठा रहता है, और दूसरे में कमल होता है। बायीं ओरके दो हाथोंमें क्रमश: पुस्तक और अक्षमाला रहती है। देवीका वाहन हंस है। देवीका वर्ण श्वेत होता है। देवोके तीन नेत्र होते हैं, और उसकी जटाओंमें बालेन्दु शोभा पाता है। १. जैन सिद्धान्तमास्कर : भाग २१, किरण १, पृ. ४-५ । २. The Jain Antiquary, Vol XXI, No. I, June 1955, p. 19-20. ३. ध्रुतदेवतां शुक्लवां हंसवाहनां चतुर्भुजो वरदकमलान्वितदक्षिणकरां पुस्तकाक्षमालान्वितवामकरी चेति । भैरवपद्मावती-कल्प : अहमदाबाद, ६० और ११ पृष्ठके बीच सरस्वतीके चित्रके नीचे लिखित, निर्वाणकलिकासे उद्धत ।। १. अभयज्ञानमुद्राक्षमालापुस्तकधारिणी। त्रिनेत्रा पातु मां वाणी जटाबालेन्दुमण्डिता । मल्लिषेण, सरस्वती-कल्प : भैरवपद्मावती-कल्प : अहमदाबाद, परिशिष्ट,
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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