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________________ r entire like ReceneCREAMIRMIRMIRace hrutinyrrhPA R RO जैन-भक्तिकायकी परमि दिया थी इन्द्रमन्दिका यह ग्रन्थ 'ज्वालिनीकल्प' के नामसे प्रसिद्ध है। प्रत्यकी रचना मान्यखेटमें हुई जब कि राजा श्रीकृष्णका राज्य था । रचनाकाल शकसं. ८६१ (वि.० सं० ९९६) माना जाता है। मन्त्रशास्त्रोंके प्रसिद्ध विद्वान थी महिलघेणसूरिने अनेक कल्पोंके साथ-साथ 'ज्वालिनीकल्प' की भी रचना की थी। श्री मल्लिषेय, जिनसेनसूरिके शिष्य और कनकसेनके प्रशिष्य थे। इनको समय ग्यारहवीं शताब्दीका उत्तरार्ध और बारहवींका पूर्वार्ध माना जाता है। पुरातत्त्व - 'विविध तीर्थकल्प' के 'चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प' में लिखा है, "प्रभासमें ज्वालामालिनी देवतासे युक्त एक चन्द्रप्रभ भगवान्को मूर्ति है, जो चन्द्रकान्तमणिको बनी हई है, और जिसपर शशिका चिह्न स्पष्ट रूपसे अंकित है।" जैन मन्दिर शिलालेख बिजौलियाके ७२वें श्लोकसे प्रकट है, “श्री सीयकके आनेपर उस कुण्डके बीचसे पना, क्षेत्रपाल, अम्बिका, ज्वालामालिनी तथा साधिराज पारन निकले थे।" यह शिलालेख चौहानराजा सोमेश्वरके राज्यकाल (वि० सं० १२२६ ) में, श्री दिगम्बर जैन मन्दिर पार्श्वनाथकी प्रतिष्ठा तथा दानादिको स्मृति के लिए खुदवाया गया था। देवगढ़के भग्न जिनमन्दिरोंमें-से एकके बाहरी बरामदेमें विराजमान चतुर्भुजा सरस्वतीकी, षोडश भुजा गरुड़वाहना चक्रेश्वरीकी, अष्टभुजा वृषभवाहना ज्वलामालिनीको एवं कमलासना पद्मावतीको मंत्तियाँ अत्यन्त कलापूर्ण एवं चित्ताकर्षक हैं। इनमें से एकपर वि०सं० १२२६ १. क्लिष्टप्रन्यं प्राकनशास्त्रं तदिति स (स्व) चेतसि निधाय । - तेनेन्द्रनन्दिमुनिना ललितार्यावृत्तगीताः ॥२६॥ ... हेलाचार्योक्तार्थ ग्रन्थपरावर्तनेन रचितमिदम् । - सकलजगदेकविस्मयजननं जनहितंकरं श्रुणुत ॥२७॥ देखिए वहो : पृ० १३७ ।। २. देखिए वही : प्रशस्ति, भन्त माग, ६, वाँ श्लोक, पृ० १३९।। ३. मल्लिषेणरि, ज्वालिनीकल्प : जैन प्रस्थप्रशस्तिसंग्रह : अन्तिम भाग, २,३. श्लोक, पृ. १४९ । ४. पं० नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास : द्वितीय संस्करण, सन् १९५६, बम्बई, पृ. ३१५। . ५. जिनप्रभसूरि, विविध तीर्थकल्प : पृ. ८५।। ६. जैन सिद्धान्तम्यस्कर : माग २१, किरण २, पृ. २७। ७. देखिए वही : पृ० १६ ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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