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________________ भाराभ्य देवियाँ वशेषोंके पास शैव मन्दिर है, जिसमें अम्बिका, चक्रेश्वरी मादि जैन देवियोंकी प्रतिमाएँ भी है, किन्तु अत्यन्त अरक्षित अवस्थामें विद्यमान हैं। त्रिपुरी में बालसागर सरोवर-वटपर जो शव मन्दिर बना हुआ है, उसकी दीवालोंके बाई भागमें जैन चक्रेश्वरी देवीकी आधे दर्जनसे भी अधिक मूर्तियां लगी है । सरोवरके बीचो-बीच जो मन्दिर है, उसमें भी चक्रेश्वरीको मूर्तियां हैं। मन्दिर और मूर्तियां मध्यकालकी हैं। रीवा संग्रहालयमें 'नं० १०४' पर युगादिदेवकी प्रतिमा है । इसके बायो बोर चक्रेश्वरीको मूर्ति है, जिसके चार मुख हैं। चक्रेश्वरीके दायें, ऊपरवाले हाथमें चक्र है, और नीचेवाला वरदमुद्रामें उठा है। वायां हाथ खण्डित है; अतः यह कहना असम्भव है कि वह उसमें क्या धारण किये थो। चक्रेश्वरीका वाहन भी स्त्रीमुखी ही है । इसमें भी बायों ओर भक्तगणोंको आकृतियां खुदो हुई हैं। चक्रेश्वरीकी भक्तिमें मनुष्य उसोसे रक्षाको याचना करता है, जो शक्ति-सम्पन्न हो। देवो तो शक्तिका रूप ही है । उसने समूचे विश्वको जीत लिया है, और दिशाओंके अन्त तक उसकी कोत्ति फैल गयो है। ऐसी सर्वोपमा देवीको शरणमें जाकर रक्षाको याचना करते हुए एक भक्त कहता है, "हे देवि चक्रेश्वरी ! तुम्हारा मुब पूरे कलियुगको लील जानेमें समर्थ है। तुम्हारी आवाज दुन्दुभीकी भौति भीमनाद करती हुई निकलती है। खगपतिपर सवार हो तुम जब विश्व-भ्रमणके लिए चलती हो, तो अच्छे व्यक्ति तुम्हारा दर्शन करनेके लिए लालायित हो उठते हैं, और दुष्टोंका खून सूख जाता है। चक्रमें-से फूटनेवाली किरणोंके साथ-साथ ही तुम्हारा विक्रम भी दशो दिशाओं में फैल जाता है। इस भांति विघ्नोंको कुचलती और विजयपताका फहराती हुई तुम साक्षात् जय-सी ही प्रतिभासित होती हो। यह सब कुछ तुम करने में समर्थ हो, क्योंकि तुम्हारे चित्तका आकार क्लीप हो चुका है, और तुमने 'ह्रां ह्रीं ह्रः' जैसे मन्त्रबोजोंको साध लिया है । हे देवि! मेरी भी रक्षा करो।" . .... 1. मुनि कान्तिसागर, खण्डहरोंका बैभव : पृ० १२३ । २. देखिए वही : पृ० १३६ । ३. देखिए वाही: पु० २००। ४. क्ली वही क्ली कारचित्ते ! कलिकलिवदने ! दुन्दुभो भीमनारे! हाँ हो ः सः खबीजे ! खगपतिगमने मोहिनी शोषिणी त्वम् । M angsiden2050
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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