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________________ भाराध्य देवियाँ सावित्री पतिमाराध्य वासुकैः सेविता भृशम् ।। तेषां संतुक्षवे देवी महापद्मे नमो नमः ॥ .. यस्या प्रता यस्यां प्रसन्नतां पद्मे तस्यां दारिदयनाशने । जय त्वं सुखदाता च महापदमें नमो नमः ॥ देवि ! दारिद्रयदग्धाहं तन्मे शं शंकरी भव । चिन्तिता वरदाता च महापद्म नमो नमः ॥ २. देवी अम्बिका परिचय अम्बिका बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथको शासनदेवी कहलाती है। वह नर और देव दोनों ही पर्यायों में उनकी भक्त थी और आज भी है । वह गिरनारपर रहती हुई भगवान्के भक्तोंकी सहायता करती है। भगवानके पथको प्रशस्त करने " ही के कारण वह उनकी शासनदेवी है, उनके मतमें सर्वप्रथम दीक्षित होनेके कारण नहीं। ऐसा नियम कहीं नहीं है कि सर्व-प्रथम दीक्षित होनेवाली स्त्री शासनदेवीके पदपर प्रतिष्ठित की जायेगी। अम्बिकाकी ख्याति अधिक थी, तेरहवीं शताब्दी तकके मूर्तिकारोंने उसकी मूर्तियां भगवान् ऋषभदेवके साथ उत्कीर्ण की हैं, जब कि होना चाहिए चक्रेश्वरीकी। बाह्यरूप यद्यपि श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रन्थोंके अनुसार अम्बिकाके बाह्य रूपमें बहुत कुछ समानता पायो जाती है, फिर भी कुछ अन्तर है। श्वेताम्बर ग्रन्थ बप्पभट्ट सूरिके 'चतुर्विशतिका' में लिखा है, "भगवती अम्बा देवोके चार हाथ हैं । वह दोम आम्रकी डाली और पाश ग्रहण करती है तथा शेष दोमें अंकुश और पुत्र रखती है । उनके शरीरका रंग सोने-जैसा है। वह सिंहपर चढ़ती हैं । भगवान् नेमिनाथकी शासनदेवी है ।" रूप-मण्डनमें लिखा है, "भगवान् नेमिनाथके तीर्थमें १. श्रीधराचार्य, पद्मावतीस्तोत्र : भैरव-पद्मावती-कल्प : अहमदाबाद, परि शिष्ट २७, पृ० १०९। २. श्री बी० सी० भट्टाचार्य ने सर्व-प्रथम दीक्षित होनेके कारण ही उसकी शासनदेवी माना है। देखिए, बी० सी० महाचार्य, जैन इक्नाप्राफी : लाहौर, पृष्ठ ९३ । । ३. देखिए इसी 'ग्रन्थ' के इसी अध्यायमें, 'देवी अम्बिकाकी मूर्तियाँ।' १. बप्पमसूरि, चतुर्विशतिका : पृष्ठ १५० । ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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