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________________ आराध्य देवियाँ १४३ 1 २ कल्पमें पद्मावती देवीकोतोतला, त्वरिता, नित्या, त्रिपुरा, कामं साधनी और त्रिपुरभैरवी कहा गया है। पद्मावती सहस्रनाम में पद्मावती, महाज्योति, जिनमाता, वज्रहस्ता कामदा, सरस्वती, भुवनेश्वरी, लीलावती, त्रिनेत्रा और चक्रेश्वरी- जैसे दस नामोंके आधारपर दस शतकोंकी रचना हुई है । पद्मावती स्तोत्र में एक स्थानपर लिखा है कि जो सुगतागममें तारा, शैवागममें भगवती गौरी, कौलिक- शासन में बज्रा और सांख्यागममें प्रकृति है, वही जैनशासन में पद्मावती के नाम से प्रसिद्ध है । कहीं-कहीं इस देवीको काली कराली, चण्डी और चामुण्डी जैसे नामोंसे भी अभिहित किया गया है ।" ४ पद्मावती के विषय में जैन- पुरातत्त्वकी साक्षी मूर्तियाँ जैन- पुरातत्त्व में अम्बिका और पद्मावतीका विशेष नाम है। प्राचीनकाल में afaarat और मध्यकाल में पद्मावतीकी अनेक कलापूर्ण मूर्तियाँ पायी जाती हैं । पद्मावतीकी एक प्राचीनकालीन मूर्ति भुवनेश्वरको खण्डगिरिकी गुफा में मिली है । इस गुफा के दूसरे भाग में चौबीस तीर्थकरों की मूर्तियाँ हैं और उनके नीचे २४ औरतोंकी, जो उनको शासन देवियाँ हैं । इसमें चार हाथवाली यक्षिणी पद्मावती भी है । श्रवणबेलगोल नगर में अक्कनबस्ति नामका एक सुन्दर मन्दिर है, जिसका निर्माण शक संवत् ११०३ में हुआ था, इसके गर्भगृह में भगवान् पार्श्वनाथको मूर्ति है और दरवाज़े के पास सुखनासिमें साढ़े तीन फुट ऊँची धरणेन्द्र और पद्मावतीकी १. भैरवपद्मावतीकल्प सूरत, १1३, पृ० २ । २. यह सहस्रनाम, भैरव पद्मावतीकल्प : अहमदाबाद, परिशिष्ट पृ० ४०-५५ पर निबद्ध है । तारा त्वं गतागमे, मगवती गौरीति शैवागमे । बज्रा कौलिकशासने जिनमते, पद्मावती विश्रुता ।। गायत्री श्रुति शालिनी प्रकृतिरित्युक्तासि सांख्यागमे । मातर्भारति ! किं प्रभूतमणितै व्याप्तं समस्तं त्वया ॥ पद्मावतीस्तोत्र : २०वाँ श्लोक, भैरवपद्मावतीकल्प : अहमदाबाद, परिशिष्ट ५, पृ० २८ । ४. देखिए वही : चौथा इलोक । ५. J.N. Banerjea, Jainism, Jain Icnography, Classical age, ' Vol. Ill, Edited by R. C. Majumdar, Bhartiya VidyaBhawan, Bambay, p. 414, ३. ""
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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