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________________ :४: आराध्य देवियाँ (१) देवी पद्मावती देवो पद्मावतीने भगवान् पार्श्वनाथके समयमें जिन-शासनको अत्यधिक उन्नति की थी, इसलिए उसे तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथकी शासनदेवी अथवा शासनसुन्दरी कहा जाता है। पद्मावतीके पति धरणेन्द्रने कमठके भीषणतम उपसर्गसे भगवान् पार्श्वनाथकी रक्षा की थी, अतः गुणोंके संग्रहमें दक्ष और जिनशासनकी रक्षामें निपुण होने के कारण उन्हें 'यक्ष' संज्ञासे अभिहित किया गया है। दम्पतिके सम्बन्धसे पद्मावतो भी यक्षिणो कहलाती है। इनका व्यन्तरदेवोंको अवान्तर जाति यक्षसे कोई सम्बन्ध नहीं है। व्यन्तरदेवोंका चिह्न वातवृक्ष-ध्वज होता है, जब कि धरणेन्द्र और पद्मावती नाग-चिह्नको धारण करनेवाले थे। वे भवनवासी देवोंकी दूसरी उपजाति नागकुमारोंके दक्षिणी भागके राजा-रानी कहलाते हैं । . पूर्व जन्ममें धरणेन्द्र और पद्मावती साधारण नाग-नागिन थे। एक वैदिक याज्ञिकके द्वारा उनकी आहुति दी ही जानेवाली थी कि युवराज पार्श्वनाथने ठोक समयपर पहुँचकर उनकी रक्षा की। फिर भी वे बहुत कुछ झुलस चुके थे। उनके मृत्यु समय पार्श्वनाथने णमोकार मन्त्र सुनाया, जिसके प्रभावसे वे मरकर भवनवासी युगलके रूपमें उत्पन्न हुए। तपस्वी पाश्वनाथपर कमठके उपसर्गको बात जानकर दोनों ही आये, और अपना मणिमयी फण तानकर पाहनवर्षास उनको रक्षा को। दोनों ही भगवान् 'जिन'के परम भक्त थे । १. “पद्मावतीजिनमतस्थितिमुन्नयन्ती तेनैव तत्सदसि शासनदेवताऽऽसीत् ।" श्रीमद्वादिराजसूरि, श्रीपार्श्वनाथचरित्र : १२१४२, पृ० ४१५ । २. "तस्याः पतिस्तु गुणसंग्रहदक्षचेता यक्षो बभूव जिनशासनरक्षणज्ञः" वहीं : १२१४२, पृ० ४१५। ३. तत्त्वार्थमाष्य : ४११२, पृ० २८४ । ४. तत्वार्थभाष्य : ४।११, पृ. २८२ । ५. भावदेवसूरि, पार्श्वनाथचरित्र : ६५०-६८ । ६. गुणभद्र, उत्तरपुराण : ७३।१३९-30 ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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