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________________ जन-भक्तिकाव्यकी पृष्ठभूमि १३० बन्दना की थी । गुजरातके वस्तुपाल और तेजपाल ( १३वीं शताब्दी विक्रम ) ने, १३ बार तीर्थ-यात्राएँ कीं, उनमें ३ करोड १४ लाख १८ हजार ८ सौ रुपया व्यय हुआ । मन्त्री वस्तुपालने, तेजपालकी पत्नी अनुपमा देवोकी आज्ञासे, १८ करोड़, ९६ लाख रुपया शत्रुञ्जय में, १२ करोड़ ८० लाख उज्जयन्तमें और १२ करोड़ ५३ लाख अर्बुद शिखरपर व्यय किया था। मन्त्रीश्वर वाग्भट ( १४वीं शताब्दी विक्रम) ने भी शत्रुञ्जयकी तीर्थ यात्रा की थी। वहीं आदीश्वरप्रासादके उद्धारमें उनका २ करोड़ ९७ लाख रुपया खर्च हुआ था । * सम्राट् कुमारपालने गिरिनारकी तीर्थ-यात्रा की थी । सीढ़ियाँ उसीने लगवायी थीं । उसने शत्रुञ्जय तीर्थक्षेत्र के ६० लाख रुपया व्यय किया था। उसपर चढ़नेके लिए उद्धार में १ करोड़ १. के. भुजबली शास्त्री, 'दक्षिण में जैनधर्म', हुकुमचन्द अभिनन्दनप्रन्थ, पृ० ३७९ । त्रयोदश तीर्थयात्रा : संघपतीभूय कृताः । सर्वाग्रेण श्रीणि कोटिशतानि चतुर्दशलक्षा अष्टादश सहस्राणि अष्टशतानि लोष्टिकत्रितयोनानि द्रव्य व्ययः । आचार्य जिनप्रभसूरि, 'वस्तुपालतेजःपालमन्त्रिकल्प:', विविध तीर्थकल्प : पृ० ८० । ३. तमादाय श्रीवस्तुपाल तेजःपालजायामनुपमादेवीं मान्यतयाऽपृच्छत्-क्वै तनिधीयत ? इति । तयोक्तम् - गिरिशिखिर एवैतदुच्चैः स्थाप्यते यथा प्रस्तुत निधिवनान्यसाद्भवति । तच्छ्र ुत्वा श्रीवस्तुपालस्तद् द्रव्यं श्री शत्रुम्जयोज्जयन्तादावव्ययत् । अष्टादशकोटयः षण्णवतिर्लक्षा: श्री शत्रुञ्जयतीर्थे द्रविणं व्ययितम् । द्वादशकोट योऽशीतिलक्षाः श्रीउज्जयन्ते । द्वादशकोटयस्त्रिपञ्चाशल्लक्षाअर्बुदशिखरे लूणिगवसत्याम् । देखिए, वही : पृ० ७९ । ४. तिस्रः कोटीस्त्रिलक्षोना व्ययित्वा वसु वाग्भटः । ५. मीश्वरो युगादीशप्रासादमुददीधरत् ॥ देखिए, वही : शत्रुब्जयतीर्थकल्प : श्लोक ६९, पृ० ३ । hagrat (वि. सं. १३६१ ), प्रबन्धचिन्तामणि : सिंघी जैन ज्ञानपीठ, शान्तिनिकेतन, वि.सं. १९८९, चतुर्थ प्रकाश, पृ० ९३ । ६. देखिए, वही : पृष्ठ ८७ ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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