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________________ जैन-मक्तिकाव्यको पृष्ठभूमि शिवार्यकोटिने भगवती आराधनाके अन्तमें लिखा है, "भक्तिसे वर्णन की गयी यह भगवती आराधना, संघको तथा मुझको उत्तम समाधिका वर प्रदान करे।" महाकवि पुष्पदन्तने 'णायकुमारचरिउ' में लिखा है कि श्री पृथ्वीदेवी, बड़ी रानीके कुव्यवहारसे वन-विहार के लिए न जाकर जिन-मन्दिरमें चली गयी। वहां उसने भगवान् जिनेन्द्रसे प्रार्थना की, “हे मोक्षगामी भगवन् ! तुम मेरे स्वामी हो । मुझे बोधि और विशुद्ध समाधि दीजिए।" समाधिस्थलोंका सम्मान ____ समाधिमरणपूर्वक मरनेवाले साधुके अन्तिम संस्कार-स्थलको 'नशियांजी' कहते हैं । प्राकृत "णिसोहिया' का अपभ्रंश 'निसीहिया' हआ और वह कालान्तरमें नसिया होकर आजकल 'नशियां' के रूपमें व्यवहृत होने लगा है । भगवतीमाराधनाको मलाराधना टीकामें लिखा है, "जिस स्थानपर समाधिमरण करनेवाले क्षपकके शरीरका विसर्जन या अन्तिम संस्कार किया जाता है, उसे निषीधिका कहते हैं।" निसीदिया' का सबसे पुराना उल्लेख सम्राट् खारवेलके 'हाथीगुम्फ' वाले शिलालेख में हुआ है। भद्रबाहु स्वामी ( वीरनिर्वाण संवत् १७० ) का समाधिस्थल कटवप्रपर, श्री स्थूलभद्र ( वीरनिर्वाण सं० २१९ ) का गुलजारबाग़ ( पटना ) स्टेशनके १. आराहणा भगवदी एवं मत्तीए वण्णिदा संती । संघस्स सिवजस्स य समाहिवरमुत्तमं दंउ ।। श्री शिवार्यकोटि, भगवती आराधना : वि. सं. १९८९, गाथा २१६८ । २. इसी मोक्खगामी, तुम मज्म सामी । फुड देहि बोही, विसुद्धा समाही ॥ कवि पुप्फयंत, णायकुमारचरिउ : कारंजा ( बरार ), १९३३ई०, ३।२०, - पृ० १६। ३. यथा-निषोधिका-बाराधक-शरीर-स्थापनास्थानम् ।। श्री शिवार्यकोटि, भगवती आराधना : गाथा १९६७.की मूलाराधना टीका । ४. कुमारीपवते अर्हतोपरि निवासेताहिकापे, निखिदिसाय या पूजावकोहि राजमितानि च नवताति वसुसतानि पूजानि जीव देवकाले रखिताः।। : देखिए, शो गोरावाला खुशालचन्द जैन, कलिंगाधिपति खारवेल : जैन सिद्धान्त मास्कर : भाग १६, किरण २ (दिसम्बर ३९४१), १४थी पंक्ति, पृष्ठ १३५।। ५. देखिए, जैन शिलालेख संग्रह : प्रथम माग, डॉ० हीरालाल जैन सम्पादित, बम्बई, पृष्ठ १, २ . . . . . . . . . . . .
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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